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वस्तुस्वरूप विवेचनकी दृष्टिसे गुणोंके चार भी भेद हैं:- १. अनुजीवी, २. प्रतिजीवी, ३. पर्यायशक्ति x. आपेक्षिक रूप ।
गुणोंके स्वभाव और विभावकी अपेक्षा से भी भेद संभव हैं ।
भावस्वरूप गुण अनुजीवी कहलाते हैं । यथा – सम्यक्त्व, चारित्र, सुख, चेतना, स्पर्श, रस, गन्ध, वर्ण आदि । वस्तुके अभाव स्वरूप धर्मको प्रतिजीवी कहा जाता है । यथा --- नास्तित्व, अमूर्त्तत्व, अचेतनत्व आदि । प्रागभाव, प्रध्वंसाभाव, अत्यन्ताभाव और अन्योन्याभात्र ये प्रतिजीवी गुणस्वरूप अभावांश होते हैं।
प्रकारान्तरसे सामान्यगुणके दस भेद हैं: - ( १ ) अस्तित्व, ( २ ) वस्तुत्व, (३) द्रव्यत्व, (४) प्रमेयत्व (५) अगुरुलघुत्व, (६) प्रदेशत्व, (७) चेतनत्व, (८) अचेतनत्व, (९) मूर्त्तत्व और (१०) अमूर्तत्व । इन दस गुणोंमेंसे प्रत्येक द्रव्यमें आठ-आठ गुण रहते हैं । यतः जीवद्रव्यमें अचेतनत्व और मूतत्व नहीं हैं तथा पुद्गलमें चेतनत्व और अमूर्तत्व नहीं है । धर्म, अधर्म, आकाश और कालद्रव्यों में चेतनत्व और मूत्तत्वगुणका अभाव है। इस प्रकार प्रत्येक द्रव्यमें आठ-आठ गुण पाये जाते हैं। आपेक्षिक गुणों में नास्तित्व, एकत्व, अत्यत्व, कर्तृत्व, अकर्तृत्व, भोक्तृत्व और अभोक्तृत्वकी गणना की जाती है ।
गुणोंके साधारणत्व और असाधारणत्वका निर्देश करते हुए बतलाया है कि ज्ञानादि गुण स्वजातिकी अपेक्षा साधारण होते हुए भी विजातिकी अपेक्षा असाधारण है । ये गुण जीवद्रव्यके प्रति साधारण हैं और शेष द्रव्योंमें न पाये जानेसे उनके प्रति असाधारण है। अमूर्त्तत्व गुण पुद्गल द्रव्यके प्रति असाधारण है, परन्तु आकाशादि अन्य द्रव्योंके प्रति साधारण है । प्रदेशत्व गुण कालद्रव्य और पुद्गल परमाणुके प्रति असाधारण है, परन्तु शेष द्रव्योंके प्रति साधारण है ।
पर्याय : स्वरूप निर्धारण और भेव
द्रव्यकी परिणतिको पर्याय कहते हैं । पर्याय' का वास्तविक अर्थ वस्तुका अंश है। अंशके दो भेद है: -- (१) अन्वयी और (२) व्यतिरेकी । अन्वयो अंशको गुण और व्यतिरेकीको पर्याय कहते हैं । व्युत्पत्तिकी दृष्टिसे जो स्वभाव, विभाव
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१. परि समन्तादायः पर्यायः - जो सब ओरसे भेदको प्राप्त करे, वह पर्याय है ।
तीर्थंकर महावीर और उनकी देशना ३२९