________________
इससे दूर है । इसमें संदेह नहीं कि राजगृहसे कुशीनगरकी यात्रा करते समय बुद्धने जिस पावामें भोजन ग्रहण किया था, वह पावा सठियांव है। सठियांवका बौद्ध संस्कृतिसे घनिष्ट सम्बन्ध है और यहां अनेक स्तूपावशेष भी है । पर जैन संस्कृतिसे इस स्थानका तनिक भी लगाव नहीं है। न एक भी ऐसा जैन प्रमाण उपलब्ध है, जिसका साक्ष्य देकर इस स्थानको तीर्थंकर महावीरको निर्वाणभूमि माना जा सके। उत्तराधिकार
तीर्थकर महावीरके चतुर्विध संघके सदस्य पांच लाख नर-नारी थे । मुनिसंघ ग्यारह गणधरोंकी अध्यक्षतामें नौ गणों या वन्दोंमें विभक्त था। श्रावकश्राविका संघमें सभी वर्ग और जातिके व्यक्ति सम्मिलित थे। भारतके कोनेकोने में तो उनके अनुयायी विद्यमान थे हो, पर भारतके बाहर गान्धार, कपिशा और पारसीक आदि देशोंमें भी उनके भक थे । ___ महावीरके निर्वाणोपरान्त - उत्तराधिकार ---गमा नाकाह उनके प्रधान गणधर इन्द्रभूति गौतमको प्राप्त हुआ। जिस दिन तीर्थकर महावीरका निर्वाण हुआ, उसी दिन उनके प्रधान शिष्य गौतम गणधर केवलज्ञानी हुए' । उनके मुक्त होनेपर सुधर्म स्वामी केवलज्ञानी हुए और इनके मुक्त होने पर जम्बूस्वामी केवलज्ञानी हए। जम्बुस्वामीके मुक्त होनेपर कोई अनुबद्ध केवली नहीं हुआ। इन तीनोंके धर्मप्रवर्तनका सामूहिक काल ६२ वर्ष है ।
इन्द्रभूति गौतम गणधरने महावीरके उपदेशोंको श्रृंखलाबद्ध, व्यवस्थित एवं वर्गीकृत रूपमें संकलितकर उनकी वाणीको स्थायित्व प्रदान किया। इन्द्रभूतिने बारह वर्षों तक संघका संचालन किया । ये भी अहंत, केवली और सर्वज्ञ थे। इनसे अगणित प्राणियोंने आलोक प्राप्त किया। १. जादो सिद्धो वीरो तहिवसे गोदमो परमणाणी ।
जावो तस्सि सिद्ध सुधम्मसामी तदो जादो॥ तम्मि कवकम्मणासे जंबूसामि त्ति केवली जादो। तत्थ वि सिक्षिपषपणे केवलिणो णत्यि अणुबद्धा ।। वासट्ठी वासामि गोदमपहुवीण पाणवंताणं । पम्मपयट्टणकाले परिमागं पिंडरूवेणं ॥
-तिलोयषण्णत्ती ४।१४७६.१४७८, २. पुणो सेणियमूदिणा भाष-सुव-पज्जय-परिणदेण मारहंगाणं पोद्दसपुग्वाणं च गंपाणभेषकेण व मुहत्तेग कमेण रयणा कदा ।
-धक्काटीका, १ पुस्तक, पृ. ६५. तोपकर महावीर और उनकी देशना : ३११