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(माम्रग्राम), जम्बुग्राम, भोगनगर होते हुए पावा पहुंचे। यहाँ चुन्द कर्मारसुत्रके आम्रवनमें निवास किया । उसने दूसरे दिन बुद्धको भोजनके लिए आमन्त्रित किया और सूकर-मद्दव तथा अन्य भोजन-सामग्री तैयार करायी । बुटने भिसंघके साथ जाकर भोजन किया । सूकर-मइव खानेसे बुद्धको रक्त गिरने लगा। थोड़ी दूर चलकर वे थक गये । उन्हें मरणान्तक कष्ट हुआ।
बुद्ध कुशीनाशकी ओर जा रहे थे। मार्गमें श्रान्त होनेपर वे एक वृक्षके नीचे विश्राम करने लगे ! बुद्धने आनन्दसे जल मांगा । आनन्द समीपसिनी ककुत्थासे जल भरकर लाये और बुद्धको पीने के लिए दिया ।
नवासे कुशोनारा : गव्यति था, किन्तु इतनी दूरीमें बुद्धको पच्चीसवार बैठना पड़ा, मध्याह्नसे चलकर सूर्यास्तके समय कुशीनाश पहुंचे । पावासे पलकर ककुत्या नदी पार की 1 आगे हिरण्यवती नदी मिली, उसके परले तटपर स्थित कुशीनाराके मल्लोंके शालवनमें गये और दो घने शालवृक्षोंके बीच में उत्तरको ओर सिरहाना करके लेट गये और यहीं निर्वाण प्राप्त किया ।
इस सन्दर्भसे यह स्पष्ट है कि महात्मा बुद्ध पाचासे कुशीनगर पहुँचे थे तथा पावा और कुशीनगरकी दूरी १२ मोल रही होगी | ककुत्था नदी भी पावाके निकट थी, जिससे जल लाकर आनन्दने उनको पिलाया था। यह पावा मल्लोंकी पावा है, तीर्थंकर महावीरको निर्वाण-भूमि मध्यमा पावा नहीं। इतिहासज्ञोंने, बुद्धको जहाँ भोजन कर सांघातिक रोग हुआ, पावाकी खोज को | कपिलवस्तुसे लेकर कुशीनारा, पडरौना, फाजिलनगर, सठियांव, सरेया, कुक्कुरपाटी, नन्दवा, दनाहा, आसमानपुर डोह, मोर विहार, फरमटिया और गांगीटिकार तक प्राचीन भवनों, मन्दिरों और स्तूपोंके ध्वंसावशेष बिखरे पड़े हैं । इन अवशेषों के देखनेसे ऐसा अनुमान होता है कि आततायी राजाओं अथवा प्रकृति के बहुत बड़े प्रकोपके कारण ये ध्वंसावशेष हुए होंगे । __ इतिहास बतलाता है कि श्रावस्तीके राजसिंहासनपर आसीन होकर विद डभने अपने पिता प्रसेनजितको मरवाकर शाक्यों और उनके नगरोंको ध्वस्त कर दिया । श्रेणिकके पुत्र अजातशत्र कुणिकने भी अपने पिताको बन्दी बनाकर मगधका सिंहासन अधीन किया और अपने ननिहाल वैशाली-गणसंघ और उनके मित्र मल्लसंघको नष्ट कर दिया। इन दो महत्त्वाकांक्षी राजाओंके प्रतिशोधके परिणाम स्वरूप ही यहाँ डीह-टीले विद्यमान हैं। बुद्धको मृत्युके पश्चात् उनकी अस्थियोंके आठ भाग किये गये, इनमें से एक भाग शक्यिोने और
दो भाग पावा एवं कुशीनगरके मल्लोंने ग्रहण किये। दोनों संघोंने उन अस्थि. भस्मोंपर स्तूपोंका निर्माण कराया। इससे यह निष्कर्ष निकलता है कि
तीर्थकर महावीर और उनकी देशना : ३०५