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ये काशीसे सम्बद्ध थे। अठारह गणराना वैशालीके नायक चेटककी सहायता करते थे।
उपर्युक टीकासे यह स्पष्ट है कि वैशालीके अधीन अठारह गणराजा थे। इनमें ही काशी-कोशलकी भी गणना सम्मिलित थी। हमारे इस कपनकी पुष्टि निरयावलिकाके एक अन्य सन्दर्भसे भी होतो है। इस सन्दर्ममें बताया गया है कि जब चेटक युद्ध करनेके लिये चला तो अठारह गणराजा भी अपनी सेनाओंके साथ चले। सन्दर्भ निम्न प्रकार है:
___'तते ण ते चेडए राया तिहि दंति सहस्से हिं जहा कूणिए जाद वेसालि नगरि मज्झमशेण निग्गच्छति निग्गष्ठित्ता जेण-वे नवमल्लई नवलेच्छई काशीकोसलगा अट्ठारस वि गणरायाणो तेणवे उवागच्छति"
तते णं चेडए राया सत्तावनाए दतिसहस्सेहि सत्तावन्नाए आसस. हस्सेहिं सत्तावन्नाए रहसहस्सेहिं सत्तावन्नाए मणुस्स कोडीएहि..''
चेटकके अठारह गणराजा थे, यह बात आवश्यकचूणिसे भी सिद्ध होती है । बताया है:
'त्रेडएणवि गणरापाणो मोलिता देसप्पते ठिता, तेसिपि अट्ठारसण्हं रायीणं सम चेडएणं तओ हस्थिसहस्सा रहसहस्सा मणुस्स कोडीयो सहा चेव, नवरि संखेवो सत्तावण्णो सत्तावष्णो...' विचार-रत्नाकरमें आया है, 'पेटकेनाऽप्यष्टादशगणराजानो मेलिताः', स्पष्ट है कि नौ मल्ल और नौ लिच्छिवि ये अठारह गणराजा ही काशी-कोशल वंशज कहलाते थे । जेकोबीका मत है कि उक्त नव जन लिच्छिवि क्षत्रिय काश्यप गोत्रीय महावीरके मातुल वैशाली-राज चेटकके सामन्त थे ।
जैन ग्रन्थोंके प्रमाणोंसे यह सिद्ध है कि लिच्छिबि क्षत्रिय थे और वे अयोध्यासे वैशालो आये थे। भगवान् महावीरका गोत्र काश्यप था और काश्यप गोत्र तीर्थंकर ऋषभदेवसे प्रारम्भ हुआ । इसी प्रकार मल्लोंका सम्बन्ध काशीके साथ है।
इन गणराजाओंके वर्णनसे पावापुरीको वास्तविक स्थितिके सम्बन्धमें निम्नलिखित निष्कर्ष प्राप्त होते हैं:--
१. महावीरके निर्वाणमें नौ मल्ल और नौ लिच्छिवि ये अठारह गणराजा १. श्रीविजेन्द्र सूरि, तोचकर महावोर, भाग २, पृ. ३१६ पर उद्धृत. २. आवश्यकचूणि, उत्तरार्द्ध, पत्र १७३. ३. उपेन्द्र महारथी, वैशाली के लिच्छिवि, पृ०४ पर उद्धृत.
सोधकर महावीर और उनकी देशना : ३०१