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लकको तेजोलेश्या के प्रयोगके पश्चात् महावीर श्रावस्ती और फौशाम्बीके मध्यवर्सी मेढ़िय ग्रामके शालि-कोष्ठक चैत्यमें पधारे थे | महावीरके विहार-वर्णन में आता है कि मध्यमा पावासे वे अम्भिय गांव गये और वहां उन्हें केवलशान हुआ और वहाँसे राजगृह आये।
(२) बिहार-वर्णनसे पावाको स्थिति चम्पा और राजगृहके मध्यमें होनी चाहिए । अतः चम्पासे मध्यमा पावा होते हुए राजगृह गये और वहसि वैशालो । अतएव तोयंकर महावीरकी निर्वाणस्थली पाचा चम्पा और राजगृहके मध्यमें हानी चाहिये।
कल्पसूत्रमें आया है कि तीर्थकर महावीरके निर्वाणोत्सवमें नव मल्ल बोर नव लिच्छिवियोंने भाग लिया। और अठारह गणराणा काशी-कोशलवंशके थे। नवमल्ल, नवलिच्छिवि और अठारह काशी-कोशलके गणराजा इस प्रकार कुछ विद्वानोंने समस्त गणराजाओंकी संख्या छत्तीस निश्चित की है। पर जैन सूत्रोंके टीका-ग्रन्थोंके अध्ययनसे उक्त अर्थ भ्रान्त सिद्ध हो जाता है। महावीरके निर्वाणोत्सबमें सम्मिलित होनेवाले कुल अठारह ही गणराजा थे, जो वैशालोके अधीन थे । कल्पसूत्रकी संदेह-विषौषधि टीकामें लिखा है:
____ 'नवमल्लई' इत्यादि काशोदेशस्य राजानो मल्लको जातीया नव कोशलदेशस्य राजानो लेख्छकी जातीया नव...' अर्थात् नवमल्ल काशो देशके राजाओंकी जाति थी और नवलिच्छिवि कोशल देशके राजाबोंकी जाति थी।
भगवती-सूत्र (सात क. ९, सूत्र २९९, पत्र ५७६)में युद्धका प्रसंग आया है । इस प्रसंगको यहाँ अभयदेवसूरिकी टोकाके साथ प्रस्तुत किया जा रहा है
"नवमल्लई नवलेच्छई कासी-कोसलगा अट्ठारस वि गणरायाणो।"
'नव मल्लई ति मल्लकिनामानो राजविशेषाः, 'नव लेन्छई' त्ति लेच्छकीनामानो राजविशेषाः एवं 'कासीकोसलग' त्ति काशी-वाराणसी तज्जनपदोऽपि काशी तत्सम्बन्षिन आद्या नव, कोशला अयोध्या तज्जनपदोऽपि कोशला त्तत्सम्बन्धिनः नव द्वितीयाः। 'गणरायाणो' त्ति समुत्पन्ने प्रयोजने ये गणं कुर्वन्ति ते गणप्रधाना राजानो गणराजा इत्यर्थः, ते ष तदानी चेटकराजस्य वैशालीनगरीनायकस्य साहाय्याय गण कृतवंत इति..." पत्र ५७९-५८०.
अर्थात् नवमल्ल मल्लको नामक राजा विशेष और नयलिच्छिवि लेच्छकी नामक राजाविशेष ये अठारह काशी-कोशलके गणराजा कहलाते थे। इनमें प्रथम नौ कोशल अर्थात् अयोध्या जनपदसे सम्बन्धित थे और द्विसीय नौ मल्ल
३०० : तीर्थंकर महावीर और उनकी वाचार्य-परम्परा