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{४) यह पाचा मध्यमा पावा कहलाती थी।
प्राचीन भारतमें पावा नामकी तीन नगरियो थीं । जैन सूत्रोंके अनुसार एक पावा भंगदेशकी राजाधानी थी। यह देश पारसनाथ पर्वतके बास-पासके भूमि भागमें अवस्थित था। वर्तमान हजारीबाग और मानमूमिके बिले इसीमें शामिल हैं। जैन आगम-ग्रन्थोंमें भंगि जनपदको गणना साढ़े पच्चीस आर्य देशोंमें की गयी है।
बौद्ध साहित्यमें इसे मलय देशको राजधानी बताया है । मल्ल और मलयको एक मान लेनेसे ही पावाको गणना भ्रांतिवश मलय देशमें की गयी है।
दूसरी पावा कोशलसे उत्तर-पूर्व में कुशीनाराको बोर मल्ल राज्यको राजघानी थो । मल्ल जातिके राज्यको दो राजधानियाँ थीं-एक कुशोनारा और दूसरी पावा । सठिाँव--फाजिलनगरवाली पावा सम्भवतः यही है। ___ तोसरी पावा मगधमें थी । यह उक्त दोनों पावाओंके मध्य में थी। पहली पावा इसके आग्नेय कोणमें और दूसरी इसके वायव्य कोषमें लगभग सम अन्तरपर थी । इसी कारण यह पावा मध्यमाके नामसे प्रसिद्ध थी।
इस पावाका सम्बंध राजा हस्तिपालको सभासे भी है । पावामें जैन सूत्रों के अनुसार महावीरका दो बार अवश्य आगमन हुआ था। उनकी दो महत्त्वपूर्ण घटनाएँ इस नगरीके साथ सम्बद्ध हैं। प्रथम बार केवलज्ञानकी प्राप्तिके अनन्तर अगलं हा दिन यहाँ पधारे । देवोंने समवशरणकी रचना की, पर विरतिरूप संयमका लाभ किसीको नहीं हो सका। बात यह है कि उन दिनों मध्यम पावामें, जो जम्भक ग्रामसे लगभग बारह योजन दूर थी, आर्य सोमिल बड़ा भारी यज्ञ कर रहा था। इस यज्ञमें देश-देशांतरके अनेक विद्वान् सम्मिलित हुए थे। महावीरने जाना-यज्ञमें आये हुए विद्वान पण्डित यदि सम्बोषित हो जायं, तो वे धर्मके आधार-स्तम्भ बन जा सकते हैं । अत: मध्यमा पाबाके महासेन उद्यान में वशाख शुक्ला एकादशीके दिन उनका दूसरा समवशरण लगा। उनका उपदेश एक प्रहर तक हुआ । उपदेशकी चर्चा समस्त नगरमें व्याप्त हो गयो | आर्य सोमिलके यज्ञमें सम्मिलित हुए इन्द्रभूति बादि ग्यारह विद्वान् ज्ञानमदसे उन्मत्त हो अपने विद्वान् शिष्योंके साथ महावीरसे शास्त्राचं करने पहुंचे । इनका उद्देश्य महावीरसे विवाद करके उन्हें पराजितकर अपनी प्रतिष्ठा बढ़ाना था, पर वहां पहुंचते ही उनका ज्ञानमद विगलित हो गया और उन्होंने श्रमण-दीक्षा स्वीकार की। इसी दिन महावीरले मध्यमा पावाके महासेन उद्यानमें चतुर्विष संघको स्थापना की। २९८ : तीर्थकर महावीर और उनकी पाचार्य-परम्परा