________________
सुर-असुरोंने मिलकर पिपंक्तियाँ प्रज्वलित की, जिससे पावानगरीमें आलोक व्याप्त हो गया।' श्रेणिक आदि राजाघोंने प्रजाके साथ मिलकर निर्वाणकल्याणकका महोत्सव सम्पन्न किया| धरती-गगन सभी आलोकसे व्याप्त हो गये।
पावाकी शोभा निराली ही थी। नौ लिच्छिवि, नौ मल्ल इस प्रकार अठारह काशी-कोशलके गणराजा तीर्थंकर महावीरके निर्वाणके समय उपस्थित थे। गांव-नगर सर्वत्र दीपोंको जगमगाहट शोभित थी। उत्सबने प्रकाशपर्वका रूप ले लिया था और काली रात्रि पूणिमाके रूपमें परिवर्तित हो गयी थी। याघ्यात्मिक आभा सर्वत्र छायी हुई थी। यह लोकविभूतिका ऐसा महान् पर्व था, जिसमें प्रकाशकी राशि दिखलाई पड़ रही थी । वैशालीके प्रांगण में कीड़ा करने वाले, माता त्रिशलाकी ममताको उभाड़नेवाले तीर्थकर महावीर आज प्रजम्यों के मो प्रणम्य बन गये थे । वैषम्यको समतामें, विरोधको समन्वयमें और तमको प्रकाशमें परिवर्तित कर महावीरने सत्य-अहिंसाकी एक नयी लिपि प्रदान की। निर्वाम-तिथि
सीर्थकर महावीरका निर्वाण मंगलवार १५ अक्टूबर ई०पू०५२७ या विक्रमपूर्व ४७० तथा शक-पूर्व ६०५ प्रातःकाल सूर्योदयके पूर्व हुआ। इस तिथिको प्रामाणिकताके सम्बन्धमें यह कहा जा सकता है कि इतिहासके क्षेत्रमें सम्राट चन्द्रगुप्तका राज्यारोहण ई० पू० ३२२ माना जाता है। और इसी तिथिक आधारपर चन्द्रगुप्त मौर्यसे पूर्व एवं उत्तरकालीन तिथियोंकी प्रामाणिकसाकी परीक्षा की जाती है। जेनपरम्परा अवन्तीमें चन्द्रगुप्तका राज्यारोहण महाचोर१. ज्वलत्प्रदीपालिकया प्रवृद्धया सुरासुरैः दीपितया प्रदीप्तया । तदा स्म पावानगरी समन्सतः प्रदीपिताकाशप्सला प्रकाशते ।।
-हरिबंशपुराण, ६६३१:. पावापुरस्य बहिरुन्तभूमिदेशे पद्मोत्पलाकुलवतां सरसां हि मध्ये । श्रीवर्धमानचिनदेव इति प्रतीतो निर्वाणमाप भगवान् प्रविधूतपाप्मा ।।
--सं० निर्वाणभक्ति, श्लो. २४. २. तथैव च बेणिकपूर्वभूभुजः प्रकृत्य कल्पापमहं सहप्रजाः । प्रजग्मुरिन्द्राश्च मुरैर्यषामर्थ प्रयाचमाना जिनबोधिषिनः ।।
-हरिवंशपुराण, ६६।२०. ३. Dr. Radha Kumud Mukherjee, Clhandragupla Maurya and
his time, F. 44-46. तथा श्रीनेत्रपाडेय, भारतका बृहत् इतिहास, प्रथम भाग, प्राचीन भारत, चतुर्ष संस्करण, पृ. २४२.
तीर्थकर महावीर और उनकी देशना ; २९१