________________
बना देना । पर प्रश्न यह है कि मनुष्य निर्वाणको प्राप्त किस प्रकार करे ? उसे अपने स्वरूपकी उपलब्धि कैसे हो? अनुष्ठान-विधान, तीर्थ यात्रा, मन्दिरमूर्तियोंके दर्शन एवं अन्य आडम्बरपूर्ण क्रियाएँ क्या मन और आत्माको परिष्कृत कर सकती हैं ? क्या बाह्य साधन कुछ सहायता कर सकते हैं? यदि मनमें कालुष्य हो, आत्मा मलिन हो और अपने स्वरूपको पहचान न हो, सब क्या बाह्य साधनोंसे निर्वाण प्राप्त हो सकता है ?
तीर्थंकर महावोरने बताया कि यह आत्मा ही कर्ता और भोक्ता है । यही अपना मित्र भी है और अपना शत्रु भी है । आत्मापर अनुशासन करनेसे स्वयंपर विजय प्राप्त होती है और जो स्वयंपर विजय प्राप्त करनेवाला है, वह सभी प्रकारके दुःख-बन्धनोंसे मुक्त हो जाता है ।
आध्यात्मिक सम्पदासे सम्पन्न होनेको अभिलाषासे धर्म-रुचि जागृत होती है और इस प्रकारकी रुचिसे सम्पन्न व्यक्ति धर्मके व्यावहारिक भेदों, अहिंसा, सत्य, अचौर्य, ब्रह्मचर्य, अपरिग्रह, समा-मादव, आर्जव प्रभूतिको जीवनमें उतारनेकी चेष्टा करता है और अभ्यासपरायण रहकर धीरे-धीरे बती हो जाता है। प्रतोंका नियम-निष्ठासे पालन, उनमें शुचिसा, सम्यक्त्व और आत्मोद्वारकी भावनाको उत्कट करनेसे सहायता प्राप्त होती है। इस प्रकार संयम और धर्मको अग्रगामी बनाकर आहार-विहार, गमन-आसन, मोन-भाषण आदि समस्त क्रिया-कलापोंका निर्वहन व्यक्तिको चारित्रके समीप लाता है ! चारित्रका बहिरंग व्यवहाररूप है और अन्तरंग निश्चयपरफ। अब सम्यक चारित्रकी उपलब्धि हो जाती है, तो श्रद्धा और ज्ञानके सम्यक् रहने के कारण व्यक्ति राग-द्वेष और मोहसे छूट जाता है ।
तीर्थकर महावीरने अथक तप, संयम और साधनाके मार्गपर चलकर योग और कषायोंके निरोध द्वारा निर्वाणकी भूमिका तैयार की। निर्वाण प्राप्त करनेकी इन सोढ़ियोंको गुणस्थानारोहण कहा जाता है। ये सीढ़ियाँ एक ही दिशाको ओर इंगित करती है-कामनाओंको जीतो, आत्माको निष्कलुष बनाओ। तीर्थकर महावीरने मनुष्यको ऊंचा उठाने के लिये, जो कुछ कहा, जो कुछ किया, उसमें मन और आत्माको ही वशमें करनेकी प्रेरणा थी।
प्रायः देखा जाता है कि जन-सामान्य बाह्य जगतमें बड़ी-बड़ी क्रान्तियाँ करके विश्वमें ख्याति प्राप्त करता है, पर अन्तर्जगत में क्रान्तिका शंखनाद करनेवाला कोई एकाध ही महावीर होता है 1 बल, पराक्रम और पुरुषार्थ दिखाकर वीर बन जाना सरल है, पर इन्द्रियों और मनपर विजय प्राप्त कर महावीर बनना कठिन है। २८६ : तीर्थंकर महावीर और उनकी आचार्य-परम्परा