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दर्शन-अर्चनसे अपनेको धन्य बनाया । वैशालीनरेश चेटक, मगधनरेश कुणिक अजातशत्रु, हस्तिशोर्षनरेश अदीनशत्रु, सौगन्धिका-नरेश अप्रतिहत, वाराणसीनरेश जितशत्रु, सिन्धुसोचीर-नरेश उद्रामण, श्रावस्ती-नरेश जितशत्रु, चम्पानरेश दधिवाहन, उज्जयिनी-नरेश चण्डप्रद्योत एवं कौशाम्बी-नरेश शतानीक प्रसिद्ध हैं । इन सभी नरेशोंने तीर्थंकर महावीरके समवशरणमें पहुंचकर शान्तिलाभ किया था। देशनामें आत्मशुद्धिके हेतु कर्मोसे संघर्ष करनेका संकेत विद्यमान था । जीवन जितना कठोर एवं संयमी होता है, व्यक्ति उत्तना ही ऊंचा उठ जाता है। जो विषय-वासनामि पड़ा रहता है, तपस्याक लिए प्रयास नहीं करता, वह जीवनमें कभी भी आगे नहीं बढ़ सकता है। नदी, सरोवर और गड्ढोंमें पड़ा भूतलका जल संघर्ष करता है-सूर्य-किरणोंसे संतप्त होता है, सो वह रश्मियोंके सहारे ऊपर उठ जाता है, सारी गन्दगी और मेल नोचे रह जाते हैं। राजा हो या रंक, ब्राह्मण हो या शूद्र, विद्वान् हो या मूर्ख जो श्रम करता है, तपश्चरण करता है, वह महान् बन जाता है। ___ महावीरके उपदेशने कितने ही व्यक्तियोंके हृदय परिवर्तित कर दिये। उनके उपदेशसे प्रभावित होकर किसीने अणुव्रत ग्रहण किये और किसीने महानत । समाज-व्यवस्था और राष्ट्र-व्यवस्थाको महत्त्वपूर्ण बातोंकी जानकारी भी प्राप्त हुई।
दिव्यध्वनि या देशनाको भाषा
तीर्थकरकी दिव्यध्वनि अन्नक्षरात्मक होती है या अक्षरात्मक, इस सम्बन्धमें आगम-ग्रन्थों में विस्तारपूर्वक विचार किया गया है। कसायपाहुड और तिलोयपण्णत्तीमें दिव्यध्वनिको साल, दन्त, ओष्ठ तथा कण्ठके हलन-चलनरूप व्यापारसे रहित होकर एक ही समयमें भव्यजनोंको आनन्द देनेवाली बताया है । हरिवंश-पुराणसे भी उक्त तथ्य पुष्ट होता है । इस ग्रन्थमें लिखा है कि ओठोंको विना हिलाये ही निकली हुई तीर्थकर-वाणीने तियंञ्च, मनुष्य और
१. अट्ठारस महाभासा खुरुलयभासा वि सत्तसयसंखा !
अक्सरमणक्खरप्मय सण्णोजीवाण सयलभासाओ ।। एवासिं भासाणं वालुवईतोट्टकंठवावारं । परिष्हरिय एक्ककालं भवजणाणेदकरभासों ।।
-तिलोयपग्णसी १२६१.६२. द्वीपंकर महावीर और उनकी देशना : २३३