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है । इस नगरीको वेष्टित किये हुए पाँचशैल हैं, इसीलिए इसे पंचशैलपुर कहा गया है। तीर्थंकर मुनिसुव्रतनाथ के चार कल्याणक यहीं सम्पन्न हुये थे । जैन साहित्य में राजगृह और विपुलाचलका बड़ा महत्त्व वर्णित है। घवलाटीका, जयघयलाटीका, तिलोयपण्णत्ती, पद्मपुराण, महापुराण, हरिवंशपुराण, जायकुमारचरिठ, जम्बुसामिचरिउ, उत्तरपुराण, बाराधना- कथाकोश, पुष्यास्रव - कथाकोष, मुनिसुव्रतकाव्य, धर्मामृत आदि ग्रन्थोंमें इस नगरीका माहात्म्य वर्णित है ।
राजगृहके साथ जैन पुराणोंकी शताषिक कथाएँ सम्बद्ध हैं। पुरातत्त्वकी दृष्टिसे भी विपुलाचल और राजगृह महत्त्वपूर्ण हैं ।
पहियान (ॐ) देखाएमा वर्णन किया है। वह लिखता है - " नगर से दक्षिण दिशा में चार मील चलनेपर वह उपत्यका मिलती है, जो पांचों पर्वतोंके बीचमें स्थित है। यहाँ पर प्राचीन कालमें सम्राट् बिबसार विद्यमान था । विपुलाचल धार्मिक पवित्रताकी दृष्टिसे प्रसिद्ध है । आज यह नगरी नष्ट-भ्रष्ट है'।"
१८ जनवरी सन् १८११ ई० को बुचनन साहबने इस स्थानका निरीक्षण किया था और इसका वर्णन भी लिखा है । उनसे राजगृह के ब्राह्मणोंने कहा या कि जरासंघके किलेको किसी नास्तिकने बनवाया है-जैन उसे उपश्रेणिक द्वारा बनाया बताते हैं । बुचमन साहबने यह भी लिखा है कि पहले राजगृहपर सुर्भुजका अधिकार था, पश्चात् राजा वसु अधिकारी हुए, जिन्होंने महाराष्ट्रसे चौदह ब्राह्मणोंको लाकर बसाया था । वसुने श्रेणिकके बाद राज्य किया था ।
कनिंघमने लिखा है कि- "प्राचीन राजगृह पांचों पर्वतोंके मध्य में विद्यमान था। मनियारमठ नामक छोटा-सा जैन मन्दिर सन् १७८० ई० का बना हुआ था । मनियारमठके पास एक पुराने कुएँको साफ करते समय इन्हें सीन मूर्तियाँ प्राप्त हुई थीं। इनमें एक मायादेवी की मूर्ति थी, दूसरी सप्तफणमण्डलयुक्त एक नग्न मूर्ति तीर्थंकर पार्श्वनाथकी थी।
एम० ए० स्टीन साहब लिखते हैं- "वैभारगिरिपर जो जैन मन्दिर बने हुए हैं, उनके ऊपरका हिस्सा तो आधुनिक है, किन्तु उनकी चौकी, जिनपर वे बने हुए हैं, प्राचीन हैं ।'
श्रीकाशीप्रसाद जायसवाल ने मनियार मठवाली -पाषाण मूर्तिका लेख पढ़कर
?. Travels of Fa-Hian, Beal (London, 1869) pp. 110-13, २. Buchanan Travels in Patna District, Page 125 - 144. 7. Archacological Survey of India, Vol. 1 ( 1871) PP. 25-26.
तीर्थंकर महावीर और उनकी देशना २०१