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महावीरको कठिन उपसर्ग दिया और महावीरने बड़ी समताके साथ उस उपसर्गको सहन किया। ___ मैढ़ियग्रामसे महावीर कौशाम्बी पधारे और पौष कृष्णा प्रतिपदाके दिन चर्याविषयक यह अटपटा अभिग्रह किया कि-"मुण्डित सिर, पैरोंमें बेड़ियां पहने हुए, तीन दिनकी भूखी, उबाले हुए उड़दके बाकुले, सूपके कोनेमें लेकर भिक्षक पर वो नुकोपर द्वारकाप खड़ी हुई तथा दासत्वको प्राप्त हुई यदि कोई स्त्री आहार देगी, तो मैं ग्रहण करूंगा, अन्यथा नहीं।"
उक्त प्रतिमा कर महावीर प्रतिदिन कौशाम्बीमें चर्याक लिये जाते । घूमतेघूमते चार महीने उन्हें बीत गये, पर अभिग्रह पूरा न हुआ।
एक दिन महावीर कौशाम्बीके अमात्य सुगुप्तके घर चर्याक हेतु पधारे । अमात्य-पत्नी नन्दा भक्तिपूर्वक प्रतिग्रहण करने लगी, पर अभिग्रह पूरा न होनेसे महावीर चल दिये। नन्दा पश्चात्ताप करने लगी। दासियोंने निवेदन किया-"ये देवार्य तो प्रतिदिन यहां आते हैं और कुछ भी लिये विना यहाँस चले जाते हैं।" दासीके इस कथनसे नन्दाने निश्चय किया कि अवश्य ही महावीरका कोई दुर्गम अभिग्रह है, जिसकी पूत्ति न होनेसे आहार ग्रहण नहीं करते।
जब अमात्य घर आया, तो उसने नन्दाको उदासीन देखा। पूछा-"क्या बात है ? मलिन और चित्तितमुख क्यों दिखलाई पड़ती हो?"
नन्दा-"आपका अमात्यपन किस कामका, बब कि चार महीनोंसे योगिराज महावीर आहार ग्रहण नहीं कर रहे हैं। पता नहीं उनका क्या अभिग्रह है? और उसकी पूर्ति क्यों नहीं हो रही है ? यदि आप महावीरके अभिग्रहका पता नहीं लगा सकते, तो आपका चातुर्य किस कामका ?"
आश्वासन देता हुमा सुगप्त बोला-"तुम चिंता मत करो, मैं उनके अभिग्रहकी जानकारी प्राप्त करूंगा, जिससे महावीरकी पारणा हो जाय ।" राजा-रानीको चिन्ता
जिस समय महावीरके अभिग्रहकी चर्चा हो रही है, उस समय वहाँ प्रतिहारी विजया भी उपस्थित थी। उसने सब बातें सुन ली और राजभवनमें जाकर रानी मुगावतीसे निवेदन किया। रानी भी इस घटनासे आकुल हुई
और राजाको उलाहना देती हुई बोली-"आपका इतना समृद्ध राज्य है और इस राज्यमें एक-से-एक बढ़कर मेषाची और प्रतिभाशाली व्यक्ति है । गुप्तचर१६६ : सोषकर महावीर और उनकी आचार्य-परम्परा