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है । इस प्रकार विचारकर महावीरने लाढ़ देशकी ओर विहार किया । यहाँपर बनाय द्वारा की जानेवाली अवहेलना निन्दा, तर्जना और ताड़ना आदि अनेक उपसर्गोको सहनकर कर्मों की निर्जरा की । इस देशको भूमिमें महावीरको निवास करने योग्य स्थान भी नहीं मिलता था। अतः वे कंकरोली, पथरीली विषम भूमिमें हो ठहरते थे। वहाँ के लोग उनपर कुत्तं छोड़ देते तथा और भी नानाप्रकारसे कष्ट पहुँचाते थे। आहार भी बड़ी कठिनाईसे उपलब्ध होता था । अतएव महावीरको कई दिनों तक लम्बा उपवास रखना पड़ता था । जब वे वहाँसे लौट रहे थे, तो मार्ग में उन्हें दो चोर मिले, जो अनार्य-भूमिमें चोरी करने जा रहे थे । महातीर को उन्होंने अपशकुन समझा और भविष्य में आनेवाली विपत्तियोंका अनुमान किया। अतएव इस अपशकुनको निष्फल करनेके विचारसे उन्होंने महादोरपर आक्रमण किया। महावीर समताभावपूर्वक उपसर्गको सहन करते रहे। उनकी साधनाने चोरोंके आक्रमणको कुण्ठित कर दिया ।
आर्य-प्रदेशमें पहुँचकर महावोर मलयदेशमें बिहार करते रहे और उन्होंने अपना पञ्चम वर्षावास मलयकी राजधानी भद्विलनगरी में सम्पन्न किया । इस चतुर्मास में महावीरने अनशनादि तप करते हुए विविध आसनों द्वारा ध्यान किया । चातुर्मास समाप्त होने पर वे भद्दिलनगरीसे पारणा के हेतु बाहर निकले और कलि-समागम की ओर विहार किया । वस्तुतः महावीरने इस पंचम चातुर्मास में भी चार महीनेका उपवास ग्रहण किया था और अनन्तर नगरीके बाहर उनकी पारणा हुई थी।
वर्ष - साधना उपसर्ग - पर- उपसगं
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महावीर कर्यालि या कदली-समागमसे जम्बूखण्ड गये और वहांसे सम्बायसन्निवेशकी ओर प्रस्थान किया । ग्रामके बाहर सामायिक ग्रहणकर महावीर ध्यानस्थ हो गये । यहाँ पार्श्व सन्तानीय नन्दीषेण आचार्य रात्रिमें किसी चौराहेपर ध्यान कर रहे थे । कोट्टपालका पुत्र पहरा देता हुआ उस चौराहे पर पधारा और नन्दिषेणको उसने चोर समझकर भालेसे मार डाला । गोशालकने इस घटनाकी सूचना नगर में दी और वह भ्रमण करता हुआ महावीरके पास लोट आया । गोशालक की चर्चा पाश्र्वापत्य अनगारोंसे भी हुई और उसने मुनि आचारविचारकी रूपरेखा प्रस्तुत की ।
तम्बा सन्निवेश से सीर्थंकर महावीर कूपिय-सन्निवेश गये । यहाँपर आपको गुप्तचर समझकर राजपुरुषोंने पकड़ लिया और उनसे उनका परिचय जानना चाहा । जब महावीरने कुछ भी उत्तर नहीं दिया और वे मौन रूपमें स्थित रहे,
तीर्थंकर महावीर और उनकी देशना १५१