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जिस लाड़लेने स्वप्न में भी संघर्ष नहीं किया है, वह इन विषम परिस्थितियों से जझेगा ? राजसी कोमल शेय्यापर शयन करनेवाला मेरा पुत्र कठोर चट्टानपर किस प्रकार शयन करेगा ? कहाँ बीहड़ वन और कहाँ सुख-सुविधासम्पन्न राजभवन | आजतक मैं जिसके मुखको निहारकर पुलकित होती रही और इसी आशा में जीवित रही कि मेरा प्यारा पुत्र महावीर मेरी मनोकामना पूर्ण कर मेरे जीवनको सफल करेगा। अब उसके संन्यासी बन जानेपर मैं जीवनको नीरस घड़ियोंको किस प्रकार वित्ताऊँगी ? में पुत्रके वियोगको एक क्षणके लिये भी सहन करने में असमर्थ हूँ । यह. में मानती हूँ कि महावीरपर मेरा उतना ही अधिकार है, जितना कोटि-कोटि मानवका । महावीर मेरा ही पुत्र नहीं है, वह जन-जनका प्यारा लाड़ला है ।" माता त्रिशलाके सोचनेकी तीव्रताने उसे मूच्छित कर दिया ।
परिचारिकाएँ जल लेकर उपस्थित हुईं और चन्दन - मिश्रित शीतल जलके सिंचन करते ही त्रिशलाको मूर्च्छा दूर हो गई ।
चेतनाके लौटते ही पुत्र वात्सल्य उमड़ पड़ा। उसे सारा संसार रूक्ष, कर्कश और कठोर प्रतीत हुआ । सारा दृश्य मर्मस्पर्शी था । माता लड़खड़ाती हुई उठी और संत दयसे महान को महाववृढ़ संकल्प लेकर वैराग्यकी ओर कटिबद्ध थे। उनके अन्तरंग में वीतरागताकी उत्ताल तरंगें उठ रही थीं और यह संसार उन्हें स्वार्थी का जलता हुआ पुञ्ज दिखलाई पड़ रहा था ।
लोकान्तिकों द्वारा चरण वन्दन
महावीरकी विरक्तिको अवगत कर लौकान्तिक देव आये और उन्होंने प्रभुके चरणोंकी वन्दना करते हुए स्तुति की
"प्रभो ! आप धन्य है और धन्य है आपका अमर संकल्प | आपने जिस जीवन के वरणका संकल्प किया है, उससे समस्त लोकोंका कल्याण होगा | आप तप, त्याग, संयम और ज्ञानके अक्षयपदको प्राप्त करेंगे। सर्वज्ञ और हितोपदेशी बनकर विश्वका कल्याण करेंगे। हम सभी आपके वैराग्यको प्रशंसा करते हैं । आपने जन-कल्याणके लिये जिस साधना पथका अनुसरण करनेका संकल्प लिया है, वह महनीय है । इस समय विश्वको आप जैसे साधक धर्म- नेसाकी आवश्यकता है । निःसन्देह महापुरुषके जीवन में एक ऐसी स्थिति आती है, जब वह विषय वासनाओं और भोगों से सर्वथा विरक्त होकर यथार्थ सत्यको प्राप्त करने के लिये व्यग्र हो उठता है | आत्म-संयमकी उच्च भावनाओंमें रमण करना उसे प्यारा १३० : तीर्थंकर महावीर और उनकी आचार्य परम्परा