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महावीरके व्यक्तिस्वमें मागरके समान गम्भीरता और हिमालयके समान उत्तुङ्गसा विद्यमान थी । मानमें प्रखरता और करुणामें कोमलता प्रादुर्भूत हो रही थी। शान्ति और क्रान्तिका एकत्र समवाय दुष्टिगोचर हो रहा था। उन्होंने सम्पूर्ण सृष्टिके साथ एकात्मकता और समरसताझा अनुभव फिया । युवावस्थाके रहनेपर भी उनका जीवन खुली पुस्तक था और आकाशके समान स्वच्छ और निर्मल था। उनके तारुण्य और भास्वर लावण्यने जन-जनका मन मोह लिया था। उनके दिव्य देहको देखकर मलिन मन भी पवित्र हो उठता था। अनन्त शक्तियोंका विकास दिनोंदिन होने लगा था। वे सामाजिक क्रान्तिके क्षेत्रमें एक नया अध्याय जोड़ना चाहते थे। उनका हृदय विप्लवसे भरा हुआ था | अन्याय और अनीतिकी राह चलता हुआ संसार उन्हें खटकता था । वे शोषितों, पीड़ितों और संतप्तोंके बीच अलख जगाना चाहते थे। जनसामान्यकी दरिद्रता और जड़ताने उनके हृदयको झकझोर दिया था। वे विश्वको सह-अस्तित्वके महान् सन्देशकी ओर ले जाना चाहते थे। जमताका आह्वान
निरीह पशुओंका हाहाकार उनकी चेतना और संवेदनाको आमत्रित कर रहा था। दिग्भ्रमित विश्वको वे स्पष्टतः दिशा-निर्देश करना चाहते थे । वे विगत तेईस तीर्थंकरोंके धुंधले पद-चिलोंको स्पष्टता और गम्भीरता देना चाहते थे। धर्म-दर्शनकी परम्पराओंपर जमी हुई रूढ़ियोंकी राखको साफकर अपनी साधनासे उसे निर्धूम अग्निका रूप देना चाहते थे।
नारीका करुण-क्रन्दन और दलित वर्गको संवेदनाएं उनके हृदयको आलोडित कर रही थीं। आध्यात्मिकताकी क्रान्ति सशक्त भूमिका तैयार कर रही थी। मोह, माया, ममता और अस्मितापर विजय प्राप्त करने के लिये उनका यौयन उत्ताल तरंगें ले रहा था। तप, त्याग और संयम द्वारा वे लोकके लोचन-कपाटोको खोलना चाहते थे। जगत्के अनिवार्य कोलाहलमें भी उन्हें आत्माका संगीत सुनायी पड़ रहा था । जंजालोंमें भी वे प्राञ्जल बने हुए थे।
युवा महावीर वैशालीके बाल-सरस्वती बने हुए थे। उनके दर्शन-मात्रसे जनताके अन्तर्नयन उद्घाटित हो जाते थे । वय और विलक्षण मनीषाको देख लोग आश्चर्यचकित थे । यौवनमें धन-सम्पत्ति और अविवेकताके स्थानपर महावीरमें त्याग, विवेक और संयमका प्रादुर्भाव हो गया था। यौवनकी अमावास्या संयमके कारण पूणिमा बन चुकी थी। न उनके मनमें क्रोष था, न आकुलता और न किसी प्रकारका भय या आतंक ही था। उनकी सरलता
तीर्थकर महावीर और उनको देशना : ११९