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शैदाव
तीर्थंकर बर्द्धमान द्वितीयाके चन्द्रमा के तुल्य वृद्धिंगत होने लगे। उनकी बाललीलाएं विलक्षण और मनोहारिणी थीं। वर्धमानकी शिशु-सुलभ क्रीड़ामोंद्वारा महाराज सिद्धार्थ और महारानी त्रिशला मनोरंजन प्राप्त करते थे | जन्मसे ही वे विलक्षण प्रतिभासे सम्पन्न थे, विशिष्ट थे और थे तीर्थंकर प्रकृतिके बन्धक | उनका शरीर अनुपम सुषमा और शोभासे युक्त था । रक्त दूधके समान श्वेत पवित्र और उज्ज्वल, वाणी मधुर तथा शरीर शंख, चक्र, पद्म, यव, धनुष आदि एक हजार आठ शुभ लक्षणोंसे युक्त अलौकिक था !
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प्रियकारिणी पुत्रको पालनेमें झुलाती, दुलराती और लोरियां सुनाती थी । वर्धमानकी शारीरिक विभूतिके साथ आध्यात्मिक विभूति भी बढ़ रही थी । ज्ञानकी दीप्तिसे उनकी कायर अनवरत सामगाशी हवी से एक बड प्रकाशित होती थी । मति, श्रुत और अवधिज्ञानका प्रकाश उन्हें आलोकित कर रहा था। सौन्दर्य राशि आविर्भूत होती जा रही थी । क्रमशः अब वे पालने से गोदोमें और गोदीसे भूमिपर लड़खड़ाकर चलने लगे थे। उनकी क्रीड़ाए पुरजन और परिजनकी थाती बन रही थी । कूप सजल और तालाब कमलोंसे परिपूर्ण होने लगे थे । खेत हरे-भरे और खलिहान धान्य- प्रचुर दिखलायी पड़ते थे । घर-घर में सुख-सम्पदा व्याप्त हो गयी थी । ऐसा लगता था कि धरती स्वयं अपना कोष लुटा रही है। लोगोंके घरोंको धन-धान्यसे भर रही है । ज्योतिषी और गणक शिशुके शारीरिक लक्षणोंको देखकर विस्मित- चकित थे। उनकी घोषणा थी कि यह बालक धरतीका श्रृंगार है। इसके प्रताप और यशका गान मनुष्य ही नहीं सूर्य-चन्द्र और नक्षत्र भी करेंगे। इसके द्वारा जगतमें मंगलदायिनी क्रान्ति होगी, जो मनुष्य के दुःख- दैन्यको मिटाकर अक्षय सुखकी ओर ले जायगी ।
तीर्थंकर महावीरको जन्मपत्रिका और ग्रह-स्थिति
तीर्थंकरके जन्मके समय बृहस्पति, शनि, मंगल ग्रह उच्च स्थानमें थे । एक भवावतारी या धर्मनायकके लिये जिस प्रकारके ग्रह - योगकी आवश्यकता रहती है, वह ग्रह-योग इनकी जन्म कुण्डली में निहित था। यहाँ उनकी जन्म कुण्डली अंकित कर ग्रहों के संक्षिप्त फलादेशका विचार किया जायगा । कुण्डलीके फलाध्ययन से यह स्पष्ट है कि वे आजीवन अविवाहित रहे हैं। सप्तम गृहमें दो पापग्रहों के मध्य राहुके अवस्थित रहनेसे पत्नीका अभाव सिद्ध होता है । उनकी जन्मपत्रिका निम्नप्रकार है
तीर्थकर महावीर और उनकी देशमा १०७