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व्याख्याएं समाप्त हो जायेंगी और सत्यका आलोक प्राप्त होगा। महावीरकी अमृत-वर्षा शीतल और सुखकर होगी । आत्माके वास्तविक स्वरूपका परिमान प्राप्त होगा। अहिंसाका चन्द्रोदय जगतके प्राणियोंका पथ-प्रदर्शन करेगा । संसार-समुद्र में निमग्न प्राधियोको वह सहास देगा, भाण करमा, शस्त्रा देगा, गति देगा और प्रतिष्ठा प्रदान करेगा। इनका धर्मामृत भुषितोंकेलिये भोजनसदश, प्यासोंकेलिये जलसमान और रोगियों के लिये औषधसमान होगा। इनकी वाणी अमृतका अक्षय कोष होगी। सूर्य : विध्यज्ञानप्राप्ति
सूर्य-दर्शनसे भावी बालक अज्ञानरूपी अन्धकारको नष्ट करनेवाला और सूर्यके समान भास्वर केवलज्ञानको प्राप्त करेगा । यों तो जन्मसे ही मत्ति, श्रुत और अवधिज्ञानका धारी होगा, पर वह अपने त्याग, तपश्चरण द्वारा कमकालिमाको भस्मकर केवलज्ञान प्राप्त करेगा। पूर्णशानी ही जगतके उत्थानका कार्य कर सकता है। केवलज्ञानको ज्योतिके समक्ष अणित दीपक और असंख्य सूर्य-चन्द्र निस्तेज हो जाते हैं । बालकको जगतके अनिवार्य कोलाहलके मध्य आरमाका संगीत सुनायी पड़ेगा। उनकी शान-ज्योति सरागताको समाप्त कर वीतरागताका विकास करेगी। तालाबोंमें ही नहीं, पृथ्वीपर भी इस दिव्यज्ञान-मार्तण्डके आलोकसे कमल विकसित हो जायेंगे। जलपूर्ण फलश : करुणाका प्रसार ___ जलपूरित दो स्वर्ण-कलशोंका दर्शन गर्भस्थ बालकके कल्याणकारी सुन्दर एवं ध्यानरत्त होनेका सूचक है। यह स्वप्न करुणाका प्रतीक है । बालक करुणासे द्रवीभूत हो अहिंसाके मार्गका प्रचार करेगा । उसका समस्त जीवन हिंसाके विरुद्ध संघर्ष करने और अहिंसाके प्रचारमें व्यतीत होगा। जिस प्रकार भयसे समाकुल प्राणियोंके लिये बलवानकी शरण आधार है, उसी प्रकार विश्वक दुःस्लोंसे भयभीत प्राणियों के लिये अहिंसा आधार है। अहिंसाकी मंगलमयताका उद्घोष इस बालक द्वारा होगा । मन, वचन और कर्म द्वारा सम्पूर्ण प्राणियोंके साथ मित्रताका भाव स्थापित कर करुणाकी प्रतिष्ठा करेगा । अनुकम्पा, दया, करुणा, सहानुभूति और संवेदना आदिको अहिंसाके अन्तर्गत सिद्ध करेगा। मत्स्ययुगल : अनन्त सौख्यकी उपलब्धि
मस्स्ययुगलको अनन्त सुखकी उपलब्धिका सूचक बताया गया है । स्वप्नशास्त्रमें मत्स्य-दर्शनको भावी सुख-समृद्धिका प्रतीक माना है । व्यक्ति प्रमादरहित हो अपने पुरुषार्थमें अहर्निश आगरूक रहता है और उसे अभीष्ट सिद्धियाँ प्राप्त होती हैं । निस्संदेह यह बालक सर्वजनकल्याणक और सुखी होगा। ९२ : तीर्थकर महावीर और उनकी माचार्य-परम्परा