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गज : तीर्थनायक
गज स्वप्नशास्त्रम महत्ताका प्रतीक है | इस स्वप्न-दर्शन द्वारा महान तीथंप्रचारक होनेकी सूचना प्राप्त होती है। त्रिशले ! तुम्हारा बालक महान होगा, संतप्त विश्वका उद्धारक होगा और तीर्थनायक बनकर अनेकान्त-शासनका पुनरुद्धारक और प्रचारक होगा। गर्भस्थ बालक अपने उदात्त गुणोंके कारण तीर्थकर पदको प्राप्त करेगा और इसके द्वारा अहिंसाका सार्वजनीन प्रचार होगा । अहिंसा, अभय और समताके भावोंका प्रसार होगा |
स्वप्नशास्त्रके अनुसार चतुर्दन्त गजको किसी महान् अभ्युदयकी प्राप्तिका प्रतीक माना जाता है। जो गज उन्नत और पुष्ट होता है, उसका स्वप्नदर्शन भावी अभ्युदयका निमित्त समझा जाता है। राज्यलक्ष्मी उसके चरणोंकी सेवा करती है। लौकिक अभ्यदय उसे घेरे रहते हैं, पर वह मनुष्यजातिके अभ्युत्थानके लिये कृतसंकल्प रहता है । वह अपनी साधनामें चुपचाप बढ़ता जाता है और करुणाका अवतार बनकर जगत्का उद्धारक बनता है। श्वेत वृषभ: सत्यप्रवर्तक
जब स्वप्न में उन्नत स्कंध वाले श्वेत वृषभका दर्शन होता है, उस समय उस स्वप्न-दर्शन द्वारा भावी बालकको सत्य-धर्मका प्रचारक समझा जाता है। निश्चयतः यह स्वप्न पवित्र आचरणसम्पन्न, दिव्यज्योतिके प्रादुर्भावका सूचक है। इस स्वप्न द्वारा निर्भीकता, सहिष्णुता और समत्वकी सुचना प्राप्त होती है। लोककल्याण सत्य-धर्ममें निहित है। इस सत्यका साक्षात्कार उग्र तपश्चरण, वासनाओंसे युद्ध एवं आसक्तियोंके संघर्ष-विजय द्वारा होता है । गर्भस्थ बालक मार्गभ्रष्ट जनमानसकोसत्यके लिये प्रेरित करेगा। जगतमें व्याप्त अज्ञानरूपी अन्धकारको छिन्नकर शान्ति और कल्याणका सन्देश देगा । बालकके जन्मसे देश और धरा तीर्य बन जायेंगी । युगों तक विश्वकी मृत्तिका चन्दन बनकर महकती रहेगी । कोटि-कोटि मानव उसके द्वारा पावन को गयो मिट्टी में लोटकर अपने तनमनको पवित्र बनायेंगे । बालकके त्याग और तपश्चरणसे सुख-सरिताएँ तरंगित हो जायेंगी । श्रद्धाकी त्रिवेणी प्रवाहित होने लगेगी। मृत्युविजेता हो वह धरतीकी गोदको अक्षय सुख और शान्तिको मणियोंसे भर देगा। सत्यका आलोक प्रस्फुटित हो जायगा । यह स्वप्न सत्यसन्ध और धर्मनिष्ठ होनेका प्रतीक है । बालक धर्मविशेषका प्रतिनिधि हो जनताको शान्ति और सुख प्रदान करेगा। सिंह : अनन्त ऊर्जाका घोतक
स्वप्नशास्त्रमें सिंहको बल, प्रताप और पौरुषकी वृद्धिका प्रतीक माना गया है । युद्ध-क्षेत्रमें शत्रुओंको परास्त करने योग्य सामर्थ्यको सूचना भो इस ९० : तीर्थंकर महावीर और उनको आचार्य-परम्परा