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आख्यानोंसे भी यही सिद्ध होता है कि स्वप्न मानवको उसके भावी जीवनमें घटित होनेवाली घटनाओंकी सूचना देते हैं। मेरे द्वारा देखे गये ये स्वप्न सामान्य नहीं हैं । इनसे अवश्य ही भविष्य की सूचनाएँ उपलब्ध होंगी ।
त्रिशला जैसे-मैले स्त्री कप विचार करती है, वैसे-वैसे उसका मानसिक तनाव बढ़ता जाता है। उसकी चिन्तनधारा स्वप्नोंका फल अवगत करनेके लिये उतनी ही अधिक प्रबल होती जाती है । उसकी उत्सुकता बढ़ती जाती है और वह अपने द्वारा देखे गये स्वप्नोंका फल ज्ञात करनेके लिये अपने पति महाराज सिद्धार्थके पास जानेका निश्चय करती है।
नित्य कर्म से निवृत हो त्रिशला उल्लास और हर्षसे विभोर होकर वस्त्राभूषण धारण करती है और पूर्णतया अपनेको सज्जित कर राजसभामें चलनेके लिये तैयार हो जाती है ।
राजसभामें पहुँचने पर महाराज सिद्धार्थं उठकर उनका स्वागत सम्मान करते हैं और अर्द्धासन दे त्रिशलाको यथोचित स्थान देते हैं। सभी सभासद उठकर महारानीका जय-जयकार करते हुए अभिननन्दन करते हैं।
महाराज सिद्धार्थ ... "देवी! आपने इतने सबेरे राजसभामें आनेका क्यों कष्ट किया ? यदि कोई आवश्यकता थी, तो मुझे ही क्यों नहीं बुला लिया ? मैं आपका आदेश प्राप्त करते ही अन्तःपुरमें चला आता ।"
त्रिशला – कोकिलकंठसे कहने लगी- "स्वामिन्! मैंने रात्रिके पिछले प्रहर में सोलह स्वप्न देखे हैं । इन स्वप्नोंका फल जाननेके लिये मेरा मन बेचैन है। निमित्तशास्त्र में अन्तिम प्रहरमें देखे गये स्वप्नोंको भविष्यफलसूचक बतलाया गया है । में इन स्वप्नोंका फल जानने की इच्छा से आपके समक्ष उपस्थित हुई हैं। कृपया मेरे देखे गये सोलह स्वप्नोंका फल बतलाइए | "
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महाराज सिद्धार्थं त्रिशला द्वारा बतलाये गये सोलह स्वप्नोंको सुनकर कहने लगे - "देवि ! तुम्हारे गर्भ से एक महान विभूति जन्म लेनेवाली है, जिसके अस्तित्व मात्र से अन्याय, हिंसा, असत्य, परिग्रह, संघर्ष, अत्याचार आदिका अन्त हो जायेगा | त्रिशले ! तुम बड़ी भाग्यशालिनी हो कि तुम्हारी कुक्षिसे एक अपराजिता ज्योति प्रादुर्भूत होनेवाली है। युग आयेंगे और जायेंगे, पर तुम्हारे पुत्री कीर्ति - गाथा सर्वत्र और सदैव गूँजतो रहेगी। वह देवोंके देव और अमरोके भी श्रद्धा - पात्र होंगे। उनकी चरण-वन्दना के लिये मनुष्योंकी तो बात ही क्या इन्द्र भी लालायित रहेंगे। ऋद्धियाँ और सिद्धियाँ तो उनके चरणोंपर लोटती रहेंगी। वह लोक कल्याणके लिये अपने सुखका त्यागकर अलख जगायेगा !"
तोकर महावीर और उनकी देशना ८९