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शत्रु सदा असमर्थ रहते हैं । धान्य, गोधन एवं अन्य आवश्यकताकी सभी वस्तुएँ इस कुण्डपुर में समवेत हैं । यहाँ के निवासी इक्ष्वाकुवंशी क्षत्रिय, प्रजाके संरक्षण और अभ्युदयमें निरन्तर तत्पर हैं । नगरका आयाम कई मील विस्तृत है । पंक्तिबद्ध मदन, कमलयुक्त सरोवर एवं विभिन्न प्रकारको कमलनियोंसे युक्त पुष्करिणियाँ अपने सौन्दर्यसे जन-मानसको आकृष्ट करती हैं ।
यह कुण्डपुर वर्तमान में बसाढ़ या बासुकुण्डके नामसे प्रसिद्ध है । इस नगर के शासनप्रमुख राजा सर्वार्थं ओर रानी श्रीमतीसे उत्पन्न महाराज सिद्धार्थं थे । सिद्धार्थको क्षत्रियकुण्डग्रामका प्रमुख शासक माना गया है। इनकी राज्यव्यवस्था में इतिहासका कलुषित पृष्ठ उज्ज्वल हो उठा था ।
वैशाली कृतार्थ हो गयी
वैशाली - गणतंत्र उन दिनोंमें सर्वाधिक शक्तिशाली और लोकप्रिय थी । वैशालीके अधिनायक महाराज चेटक थे । इन्हें काशी- कोशल के नौ लिच्छवियों और नौ मल्ल राजाओंका भी अधिक साथ एक है | सिंह अथवा सिंहभद्र था, जो वज्जिगणका प्रघान सेनापति था। चेटक निर्ग्रन्य श्रमणका उपासक था । इसकी सात कन्याएं थीं, जिनमें प्रभावतीका विवाह वीतिमयके राजा उद्रायणके साथ हुआ था । पद्मावतीका कौशाम्बीके नरेश शतानीकके साथ, शिवाका उज्जयिनीके राजा प्रद्योतके साथ, त्रिशलाका वैशालीके उपनगर कुण्डपुरके राजा सिद्धार्थ के साथ, चेलनाका राजगृहके राजा श्रेणिकके १. तत्राखण्डलनेत्रालोपचिनीखण्डमण्डनम्
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सुखाम्भः कुण्डमाभाति नाम्ना कुण्डपूरं पुरम् ॥ यन प्रासादसङ्घातः शङ्खशुभ्रैर्नभस्तलम् । पवलीकृतमामाति शरम्मेवैरिवोन्नतः । चन्द्रकान्तकरस्पर्शाचन्द्रकान्त शिलाः निशि । द्रवन्ति यद्गृहामेषु प्रवेदिन्य इव स्त्रियः || सूर्यकान्तकरासङ्गात् सूर्यकान्तानकोटयः । स्फुरन्ति यत्र गेहेषु विरक्ता इव योषितः ॥ पद्मरागमणिस्फीतिर्यत्र प्रासादमूर्धनि । इनदपरिष्वङ्गवङ्गमेवातिरज्यते मुक्तामरकताछोयंजनंदूर्यविभ्रमः
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एकमेवं सदा घसे मत्समस्ताकरश्रियम् ॥ शाललमहावठपरिखापरिमेषिणः
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यस्योपरि परं
मित्रेत रमण्डलम् ॥
- हरिवंशपुराण, २५-११.
८४ तीर्थंकर महावीर और उनकी आचार्य-परम्परा