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हजार सात सौ सात थी । प्रतिनिधिसभाको संथागार कहा जाता था। यह राज्यकी व्यवस्थापिका सभा होती थी ।
लिच्छवि, विदेह और अन्य छ : राज्योंको मिलाकर एक संघ बना हुआ था, जिसे वज्जिसंघ कहते थे । वज्जिसंघकी शासन व्यवस्था सम्बन्धी निम्नलिखित विशेषताएं थीं :
१. वज्जिसंघकी अनेक सभाएं थीं, जिनके अधिवेशन प्रायः हुआ करते थे । २. वज्जिसंघके लोग परस्पर मिलकर राजकीय कार्योंको सम्हालते थे, एक होकर बैठक करते और अपनी तथा संघकी उन्नति के लिये प्रयास करते ।
३. ये अपने संघके परम्परागत नियमों और व्यवहारोंके पालने में सावधान रहते थे और संघद्वारा प्रतिपादित एवं विहित व्यवस्थाका अनुसरण करते थे ।
४. इनका शासन वृद्धोंके हाथोंमें था, जिनका ये लोग आदर करते थे और जिनकी बातोंको ध्यानपूर्वक सुनते-समझते थे ।
कुशीनारा और पावामें मल्लोंका गणतन्त्र स्थापित था । इसमें आठ प्रमुख व्यक्ति रहते थे और शासनका समस्त कार्य संथागार द्वारा किये गये निर्णयोंके आधारपर सम्पादित होता था ।
इस प्रकार तीर्थंकर महावीरके समयमें देशकी शासन व्यवस्था एक और गणराज्योंकी लोकतन्त्रात्मक पद्धतिपर आधारित थी और दूसरी ओर राजतन्त्रव्यवस्था स्वतन्त्ररूपसे विकसित हो रही थी । गणतन्त्रोंमें पारस्परिक ईर्ष्याद्वेष एवं दलबन्दियों विद्यमान थीं ।
आर्थिक स्थिति
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तीर्थंकर महावीरके समयमें भारत में अर्थ संकट नहीं था । उस समयका भारत आजसे कहीं अधिक सम्पन्न और सुखी दृष्टिगोचर होता है। तत्कालीन जैन और बौद्ध साहित्य में आर्थिक समृद्धिके पर्याप्त चित्रण प्राप्त होते हैं ।
पाणिनिकी अष्टाध्यायी, रामायण, महाभारत आदि ग्रन्थों में उन्नत आर्थिक जीवन सम्बन्धी सामग्री प्राप्त होती है। जनपदोंमें समृद्ध होनेवाले विभिन्न शिल्प या देशोंके लिये जानपदीयवृत्ति (४|१|४२ ) शब्द उपलब्ध होता है । कुछ व्यक्ति वेतनसे भी आजीविका उपार्जन करते थे और कुछ शासन में कार्य करते थे । सरकारी श्रेणीमें कार्य करनेवाले अध्यक्ष और युक्त कहलाते थे। शस्त्रोपजीवी व्यक्तियों का भी निर्देश प्राप्त होता है । भूत्ति या पारिश्रमिक लेकर काम करने
तीर्थंकर महावीर और उनकी देशना : ६७