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और श्रावस्तीका महत्त्व बढ़ता जा रहा था । काशीके साथ इसका संघर्ष बहुत दिनों तक चला और अंतमें काशीके अस्तित्वको समाप्त कर कोशल - राजाओंने अपने साम्राज्यका विस्तार किया । श्रावस्ती नगरीका व्यापार की दृष्टिसे बड़ा महत्त्व था । शाक्योंकी राजधानी कपिलवस्तु इसी कोशल राज्यके अंतर्गत थी ।
वृज्जि - यह आठ राज्यों का एक संघ था। जिसमें लिच्छवी, विदेह, और झाक ( नाथवंश) विशेष महत्व पूर्ण थे । ये सभी उत्तर-विहारमें थे। महावीर और बुद्धके समय तक बृज्जिसंघ विद्यमान था । पाणिनि और कौटिल्यने भी वृज्जियों किये हैं। वहीं पति भी और इस संघकी राजधानी वैशाली थी । उन दिनों वैशाली संस्कृति और सभ्यताका प्रधान केन्द्र थी । वृज्जिशासनमें प्रत्येक ग्रामका प्रमुख राजा कहलाता था । राज्यके सामूहिक कार्यका विचार एक परिषद्वारा होता था, जिसके वे सभी सदस्य होते थे ।
मल्ल - वृज्जियोंके पड़ोसी मल्ल थे और उनका भी गणराज्य था । ये लोग वृज्जिके पश्चिम और कोशलके पूर्व में थे । पावा और कुशीनगर इस राज्यके प्रमुख नगर थे । मल्ल दो भागोंमें विभक्त थे । एक भाग कुशीनगरमें रहता था और दूसरा पावामें । महाभारतमें मल्लके दोनों राज्योंका उल्लेख है ।
बि – आधुनिक बुन्देलखण्ड के अन्तर्गत यह राज्य था और इसकी राजधानी शक्तिमती थी । शिशुपाल यहींका राजा था ।
वत्स - काशीके पश्चिममें यह जनपद स्थित था। पुराणोके अनुसार राजा विचक्षुने यमुना नदी के तटपर अपने राजवंशकी स्थापना हस्तिनापुरके राज्यपतनके अनन्तर को थी। इसकी राजधानी कोशाम्बी थी। यह व्यापारिक मार्गपर स्थित था, इसलिये इसका विशेष महत्त्व था । अवन्तिके साथ इसका निरंतर संघर्ष चलता रहता था ।
कुछ - दिल्ली और मेरठके समीपवर्ती प्रदेशमें यह राज्य स्थित था और इसकी राजधानी इन्द्रप्रस्थ थी । एक जातकके अनुसार इस राज्यमें तीनसी संघ थे । उत्तराध्ययनसूत्र में यहाँके इक्ष्वाकु नामक राजाका उल्लेख आया है। जातककथाओंमें सुतसोम, कौरव और धनजय यहाँके राजा माने गये हैं । प्रारम्भमें यहाँ राजतन्त्र था, तदनन्तर यहाँ गणतन्त्रको स्थापना हुई। यह धर्म और शील
प्रधान जनपद मा ।
पांचाल - कुरु और पांचाल मिलकर सम्भवतः एक राष्ट्र गिना जाता था । अतः कुरु राष्ट्रकी राजधानी कभी इन्द्रप्रस्थ, कभी काम्पिल्यनगर और कमी उत्तर
६४ तीर्थंकर महावीर और उनकी आचार्य परम्परा