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गाथा : २९-३२
पंचमो महाद्रियारो
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अर्थ--- जम्बूद्वीप में लवणोदधि और धातकीखण्ड में कालोद नामक समुद्र हैं। शेष समुद्रों के नाम द्वीपोंके नामोंके सदृश ही कहने चाहिए ।। २८ ।।
समुद्रस्थित जल के स्वादों का निर्देश
पत्तेरसा जलही, वसारो होंति तिष्णि उदय-रसा ।
सेसं' वीउच्छु-रसा, तदिय-समुद्दम्मिमधु-सलिल ॥२६॥
अयं -- चार समुद्र प्रत्येक रस ( अर्थात् अपने-अपने नामके अनुसार रसवाले ), तीन समुद्र उदक ( जलके स्वाभाविक स्वाद सदृश ) रस और शेष समुद्र ईख रस सदृश हैं। तीसरे समुद्रमें मधु ( के स्वाद ) सदृश जल है ।। २६ ।।
पत्तेक रसा वारुणि-लक्षणद्धि-घदवरो य खोरवरो । उदक- रसा कालोदो, पोषखरओ सयंभुरमणो य ॥ ३०॥
अर्थ- वारुणीवर, लवणाब्धि, घृतवर और क्षीरवर, ये चार समुद्र प्रत्येक रस ( अपनेअपने नामानुसार रस ) वाले तथा कालोद, पुष्करवर और स्वयम्भूरमण, ये तीन समुद्र उदक रस ( जल रसके स्वाभाविक स्वाद ) वाले हैं ।। ३० ।।
समुद्रों में जलचर जीवों के सद्भाव और अभाव का दिग्दर्शन लवणोदे कालोदे, जीवा अंतिम सयंभुरमणम्म । कम्म- मही- संबद्ध े, जलयरया होंति ण हु सेसे ॥ ३१ ॥
श्रथं -- कर्मभूमि से सम्बद्ध लवरगोद, कालोद और अन्तिम स्वयम्भूरमण समुद्र में ही जलचर जीव हैं। शेष समुद्रों में नहीं हैं ।। ३१ ।।
ate - समुद्रों का विस्तार
जंबू जोयण- लक्खं, पमाण- वासा दुद्गुण-बुगुणाणि ।
विक्खंभ पमाणाणि, लवणादि सयंभुरमतं ॥ ३२ ॥
१००००० । २००००० ! ४००००० | ८००००० | १६००००० | ३२०००००।
१. द. सेसदिय ज से संद्दी
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