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तिलोय पण्णत्ती
[ गाथा : २७-२८
रूप्यत्र रसमुद्र, रूप्यवरद्वीप, हिंगुलसमुद्र, हिंगुलद्वीप, अंजनवर निम्नगाधिप, अंजनवर द्वीप, यामसमुद्र, श्यामद्वीप सिदूरसमुद्र, सिंदूरद्वीप, हरिताल समुद्र, हरिताल द्वीप तथा मनःशिलसमुद्र और मनःशिलद्वीप ये बत्तीस समुद्र और द्वीप बाह्यभागमें अवस्थित हैं ।। २२-२६ ।।
समस्त द्वीप - समुद्रों का प्रमाण
चट्ठी-परिवज्जिद श्रड्ढाइज्जंबु - रासि रोम- समा ।
से संभोणि हि दीया, सुभ-णामा एक्क-णाम बहुवाणं ॥ २७ ॥
श्रयं - चौंसठ कम अढ़ाई उद्धार सागरोंके रोमों प्रमाण अवशिष्ट शुभ-नाम- धारक द्वीपसमुद्र है । इनमें से बहुतों का एक ही नाम है ॥। २७ ॥
विशेषार्थं -- त्रिलोकसार गाथा ३५९ और उसको टीकामें सर्व द्वीपसागरों की संख्या इस प्रकार दर्शाई गयी है-
X साधिक प० छे x ३ )
प० के० जगच्छ्रेणी के अर्धच्छेद - ( असं० जगच्छ्रेणीके इन अर्धच्छेदोंमेंसे ३ अर्धच्छेद घटा देनेपर राजूके अर्धच्छेद प्राप्त होते हैं। यथा-राजूके अर्धच्छेद= [ ( x साधिक प० छे ×३ } – ३ }
प० ० प्रसं०
साधिक प० ले
कम
कर देनेपर
] जो अवशेष रहे उतने प्रमाण हो द्वीप
राजू के इन अर्थच्छेदों में से जम्बूद्वीप के
प० ०
[ ( असं समुद्र हैं । इनमेंसे आदि-अन्तके ३२ द्वीपों और ३२ समुद्रों ( ६४ ) के नाम कह दिये गये हैं। शेष द्वीप - समुद्र भी शुभ नाम वाले हैं और इनमें बहुतसे द्वीप - समुद्र ( एक ) समान नाम वाले ही हैं, क्योंकि शब्द संख्यात हैं और द्वीप समुद्र असंख्यात हैं ।
१० छे' x ३ - ३ ) - साधिक प० छे
द्वीप - समुद्रों का जो प्रमाण प्राप्त हुआ है वह पल्यके प्राधारित हैं, सागरके आधारित नहीं | इसी ग्रन्थके प्रथम अधिकारकी गाथा ९४ और १२८ में तथा इसी पूर्व अधिकार की गाथा ७ में प्राचार्य स्वयं कह चुके हैं कि उद्धार पल्यके जितने समय (रोम) हैं उतने ही द्वीप समुद्र हैं किन्तु इस गाथा में उद्धार सागरके रोमोंके प्रमाण बराबर द्वीप - सागरोंका प्रमाण कहा गया है; जो विद्वानों द्वारा विचारणीय है ॥१२७॥
समुद्रोंके नामोंका निर्देश
जंबूदीवे लवणो, उबही कालो त्ति बादईसंडे | अवसेसा वारिणिही, बत्तव्या बीन-सम-णामा ||२८||