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________________ ६०६ ] तिलोय पण्णत्ती [ गाथा : ६७८-६८१ अर्थ --- वैश्रासनके सह कह पृथिवी तक्षकुछ कम सात राजू लम्बी और आठ योजन बाहुल्यवाली है ||६७७ ॥ जुत्ता घणोवहि-घणाणिल तणुवादेहि' तिहि समीहि । जोयरण बीस सहस्सं, पमाण बहलेहि पत्तेषकं ॥ ६७८ ॥ - - अर्थ – - यह पृथिवी घनोदधि, घनवात और तनुवात इन तीन वायुनोंसे युक्त है । इनमें से प्रत्येक वायुका बाहय ( मोटाई ) बीस हजार योजन प्रमाण है || ६७८ ॥ एदाए बहुमके, खेत्तं णामेण ईसिप भारं । अज्जुण-सुवण्ण-सरिसं णाणा रयणेह परिपुण्ण ॥६७६ ॥ अर्थ — इसके बहु-मध्य-भागमें नाना रत्नोंसे परिपूर्ण चांदी एवं स्वर्णके सदृश ईषत्प्राग्भार नामक क्षेत्र है ||६७२। - · · उत्तारण धवल - छत्तोवमाण संठाण- सुंबरं एवं । पंचत्ताल जोयण लक्खाणि वास संजुतं ॥ ६८० ॥ अर्थ - यह क्षेत्र उत्तान धबल छत्रके सदृश प्राकारसे ( ४५००००० ) योजन प्रमाणसे संयुक्त है ||६६०।। तम्मज्भ - बहलमट्ठ, जोयणया अंगुलं पि तम्मि श्रट्टम-मू- मञ्झ-गवो, तप्परिही मणुव खेत्त-परिहि समो ॥ ६८१|| ८ । अं १ । १. . . क. ज. ठ. धरणालिबाबादेहि । सुन्दर और पैंतालीस लाख अर्थ – उसका मध्य बाहुल्य आठ योजन और अन्त में एक अंगुल प्रमाण है । श्रष्टम भूमि में स्थित सिद्धक्षेत्र की परिधि मनुष्य क्षत्रको परिधिके सदृश है || ६८१ ॥ [ चित्र अगले पृष्ठ पर देखिये ]
SR No.090506
Book TitleTiloypannatti Part 3
Original Sutra AuthorVrushabhacharya
AuthorChetanprakash Patni
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year
Total Pages736
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Geography
File Size15 MB
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