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________________ ६२ ] दिती [ गाथा : ६५६ - ६६० ३५२३५२ है । इसमें उपर्युक्त श्राठ कुलोंका प्रमाण मिला देनेपर आठ दिशाओंके आठ कुलों एवं आठ अन्तरालोंके सोलह कुलोंके लौकान्तिक देवोंका कुल प्रमाण ( ५५४५४ + ३५२३५२- ) ४०७८०६ होता है । लौकान्तिक देवोंके अवस्थान आदिका चित्रण इसप्रकार हैं--- LEVAS लौकानिक लोक जिस नाली में ऊपर की ओर से देखने पर - AFGETREN 3207 207 2007 fest? Meka 1002 म 9 १६ कामवर विन नवमेयर २६०१६ ५ १४ निविशन , सारस्वत विमान Go 20000. ना विमान १० सूर्यभविश GOO आदित्य विमान ००० ११ img भावमान मतान्तरसे लोकान्तिक देवोंकी स्थिति एवं संख्या लोय विभागाइरिया,' सुराण लोयंति-आण वक्खाणं । अण्ण सरूवं बेंति, त्ति तं पि एहि परूमो ॥१६५८ ॥ Tratt अर्थ --- लोकविभागाचार्य लौकान्तिक देवोंका व्याख्यान अन्य रूपसे करते हैं। इसलिए अब उसका भी प्ररूपण करते हैं ।। ६५८ ।। पुव्युत्तर दिग्भाए, वसंति सारस्सवाभिधाण सुरा । आइच्चा पुव्वाए, वहि दिसाए सुरा - बण्ही ॥। ६५६ ॥ दक्खिन- दिसाए अरुणा, इरिदि-भागम्मि गद्दतोया य । पच्छिम दिसाए सुसिया, अब्बाबाधा मरु बिसाए ||६६०॥ पुष तदिभाए, ब. पुषं व लदिग्भाए । ४. व. व. क. ज. ठ. सारस्सतिसा - १. द. व. क, ज, ऊ लोयविभाहरिया | २. व. ब. क. ज. उ. तिति पिछे । ३. द. क. ज. ठ. -- I
SR No.090506
Book TitleTiloypannatti Part 3
Original Sutra AuthorVrushabhacharya
AuthorChetanprakash Patni
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year
Total Pages736
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Geography
File Size15 MB
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