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________________ मो महाहियारो चंदाभा सूराभा, देवा आइछ्च वण्हि विच्छाले । अक्खा खेमंकर णाम 'सुरा 'वहि अदम्म ||६४४ || गाथा । ६४४-६४८ ] - अर्थ - आदित्य और वह्निके अन्तराल में चन्द्राभ और सूर्याभ ( सत्याभ ) तथा वह्नि धौर अरुण के अन्तरालमें श्रयस्कर और क्षेमङ्कर नामक देव शोभायमान हैं ॥। ६४४ ।। विसकोट्ठा कामधरा, विच्चाले अरुण गद्दतोयाणं । निम्माणराज विसत-रविप्रा गद्दतोय तुसिताणं ।। ६४५ ।। - - अरुण और गर्दतोयके अन्तराल में वृषकोष्ठ ( वृषभष्ट ) और कामधर ( कामचर) तथा गर्दतीय और तुषितके अन्तराल में निर्माणराज ( निर्माणरज ) और दिगन्तरक्षित देव हैं ।। ६४५ ।। तुसितव्याबाहाणं, अंतरवो श्रप्य सम्व रक्ख सुरा । मरुवा बसुदेवा, तह अवाबाह-रिट्ठ- मज्झम्मि ।। ६४६ ॥ अर्थ - तुषित और प्रन्याबाध के अन्तराल में आत्मरक्ष और सर्वरक्ष देव तथा प्रध्याबाध और अरिष्टके अन्तराल में मरुत् देव धौर बसुदेव हैं || ६४६ || सारस्सव-रिद्वाणं, विच्चाले प्रस्त-विस्स- णाम-सुरा । सारस्य आइच्या, पत्तेषकं होंति सत्त-सया ।।६४७ ।। [ ५६६ ७०० अर्थ- - सारस्वत और अरिष्ट के अन्तराल में अश्व एवं विश्व नामक देव स्थित हैं । सारस्वत और श्रादित्य प्रत्येक सात-सात ( ७००-७०० ) सौ है ।। ६४७ ।। वही श्ररुणा देवा, सत्त-सहस्वाणि सत्त पत्तेषकं । नव- जुत्त-णय सहस्सा, लुसिव सुरा गद्दतोया वि ।। ६४८ ॥ १. व. क. के. ज. य, सुरो । ३. ६. ब. रक्खि । ४ व. ब. क. ज. . तूरिथ । ७००७ । २००९ - वह्नि और अरुण में से प्रत्येक सात हजार सात ( ७००७ ) तथा तुषित और गर्दतोय में से प्रत्येक नौ हजार नी ( ९००९ ) हैं । ६४८ || २. प. क. ज. ठ. वव्हिएतम्मि, व बहिए भंति ।
SR No.090506
Book TitleTiloypannatti Part 3
Original Sutra AuthorVrushabhacharya
AuthorChetanprakash Patni
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year
Total Pages736
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Geography
File Size15 MB
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