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________________ तिलोयपण्णत्ती । गाथा : ४६७-४७० अर्थ छयासठ लाख करोड़, छयासठ हजार करोड़, छह सौ छयासठ करोड़ अधिक छयासठ लाख छयासठ हजार छह सो छयासठ और तीनसे विभक्त दो कला {६६६६६६६६६६६६६६), इतने पल्य प्रमाण ऋतु इन्द्रकमें उत्कृष्ट प्रायु है। यही आयु उसके श्रेणीबद्ध और प्रकीर्णकोंकी भी जाननी चाहिए ।।४६५-४६६।। । उड-पालुक्कस्साऊ, इच्छिय-पडल-प्पमारण - स्वेहि । गुणिणं प्राणेज्जं, तस्सि जेट्टाउ - परिमाणं ॥४६७॥ अर्थ-ऋतु पटलको उत्कृष्ट आयुको इच्छित पटल प्रमाण रूपोंसे गुणित कर उसमें उत्कृष्ट आयुके प्रमाणको ले आना चाहिए ।।४६७।। चोसद्द - ठाणेस तिया, एक्कं अंकक्कमेण पल्लाणि । एक्क - कला उक्कस्से, पाऊ विमलिंबयम्मि पुढं ॥४६॥ १३३३३३३३३३३३३३३।।। अर्थ-अंक क्रमसे चौदह स्थानोंमें तीन और एफ, इतने पल्प और एक कला प्रमाण विमल इन्द्रको उत्कृष्ट प्रायु है ।।४६८।। विशेषा-ऋतु पटलकी उत्कृष्ट आयुके प्रमाण को इच्छित पटल संख्यासे गुणित करने पर उस पटल में उत्कृष्ट आयुका प्रमाण प्राप्त हो जाता है । यथा ऋतु विमान की उत्कृष्ट मायु ६६६६६६६६६६६६६६४२= १.३३३३३३३३३३३३३३३ पल्य विमल नामक दुसरे इन्द्रको आयु का उत्कृष्ट प्रमारा है। चोदस-ठाणे सुग्ण, दुगं च अंक - क्कमेण पल्लागि । उपकस्साऊ चंदिदयम्मि सेढी - पइण्णएस च ॥४६॥ २०००००००००००००० । अर्थ अंक क्रमसे चौदह स्थानोंमें शून्य और दो [ ६६६६६६६६६६६६६६३४३२०००००००००००००० 1 इतने पल्य प्रमाण चन्द्र इन्द्रक तथा उसके श्रेणीबद्ध और प्रकीर्णक विमानोंमें उत्कृष्ट आयु है ।।४६९।। चोद्दस-ठाणे छक्का, दुगं च अंक-क्कमेण पल्लारिण। दोणि कला उक्कस्से, प्रा. वग्गुम्मि णावग्यो ॥४७०॥ २६६६६६६६६६६६६६६ । । ।
SR No.090506
Book TitleTiloypannatti Part 3
Original Sutra AuthorVrushabhacharya
AuthorChetanprakash Patni
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year
Total Pages736
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Geography
File Size15 MB
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