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[ ६३ ] विषय गाथा/पृ० सं० | विषय
गाथा/प० सं० जिनेनाप्रासाद
४१४।५४२ १४. लोकान्तिक देवों का स्वरूप ५३७५९७ देवियों और वल्लभामों के भवन
मतान्तर से लौकान्तिक देवों की स्थिति एवं संख्या
६५८१६.२ द्वितीयादि वेवियों का कथन
४२४१५४६
लौ, देवों के उसेवादि का कथन ६६३।६.३ उपबन प्ररूपणा
४३२१५४
लो. देवों में उत्पत्ति का कारण लोकपालों के कोडानगर ४३६१५४८
६६९६०४
१५. गुणस्याटिक का स्वरूप : पणिका महासरियों के नगर ४३८१५४६
२. प्ररूपणाएँ
६८६।६०९ सौधर्मेन्द्र आदि के यान-विमान ४४११५४९
१६. सम्यवस्वहण के कारण
७००।१११ इन्द्रों के मुकुट चिह्न
४५११५५१ १७. वैमानिक देव मर कर कहाँ कहाँ जन्म अहमिन्द्रों की विशेषता ४५५१५५४ लेते हैं
७०३।११२ ८. भायु : प्रत्येक पटल में देवों को प्रायु ४६११५५५
१८. अवधिज्ञान :
७०८।६१३
१९. बेषों को संख्या:मानिक देवों का उस्कृष्ट आयु
४६५५५५
पृथक-पृथक् प्रमाण अघन्य आयु
२०. देवों को शक्ति
७२०१६१६ इन्द्रों के परिवार देबों की आयु
२१. पारों प्रकार के देवों की योनि प्ररूपमा ७२२६१७ इन्द्र देखियों की पायु
५२९१५६६
अधिकारान्स मंगलाचरण इन्द्र के परिवार देबों की देवियों की
७२.६१८ ५३६/५७
नवम महाधिकार प्रथम यूगल के पटसों में भायु का
(गाथा १-८२, पृ. ६१६-६३६ ) प्रमाण
मंगलाचरण व प्रतिमा १. जन्म-मरण का असर ५४५५७८ पाँच मन्तराधिकारों का निर्देश
२०६१६ मतान्तर से विरह काल
५५२१५७६ १. सिखों का निवास क्षेत्र १०. माहार : सपरिवार इन्द्रों के माहार
२. सिद्धों की संख्या
५६२१ का काल
५५४१५८२
३. सिखों की अवगाहना ११. श्वासोच्छ्वास
५६३५३ ४. सिद्धों का मुख
१७४६२४ १२. चेवों के शरीर का उत्सेध
५६५५५४ ५. सियत्व के हेतुभूत भाव
२२१६२५ १३. वेवायुबन्धक परिणाम
५५५५५५
कुन्थुनाय जिनेन्द्र से वर्धमान जिनेन्द्र को देवों में उत्पद्यमान जीवों का स्वरूप ५८०५८७ क्रमशः नमस्कार
७०।६३४ उम्पत्ति समय में देवों को विशेषता ५९०।५८९
पंच परमेष्ठी को नमस्कार
७८।६३५ भेरी के शम्म श्रवण के बाद होनेवाले
भरत क्षेत्रगत २४ जिनों को नमन विविध क्रिया कलाप ५६४५८९ *प्रन्पात मंगलाचरण
10१६३६ मिनपूजा का प्रक्रम
५९६५९. * आपका प्रमाग एवं सामावि देवों का सुखोपभोग
६१३३५६२ *टीकाका माताजी को प्रशस्ति समस्काय का निरूपण ६२०१५१४ *मायानुक्रमणिका
EY9 कृष्णराजिमों का पल्पबहत्व
६३२५९६
आयु