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पितो
देवियों की उत्पत्तिका विधान
सोहम्मीसाणेसु, उष्पज्जते हु सव्व
देवीयो ।
उवरिम कप्पे ताणं, उप्पत्ती पस्थि कइया वि ||३३३||
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अर्थ- सब देवियां सौधर्म और ईशान कल्पोंमें ही उत्पन्न होती हैं, इससे उपरिम कल्पों में उनकी उत्पत्ति कदापि नहीं होती ||३३३||
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छल्लक्खाणि विमाणा, सोहम्मे दविखणिय-सव्वाणं । लक्खा, उत्तर इंदाण य विमाणा ||३३४॥
ईसाणे चउ
[ गाथा : ३३३ - ३३७
तेसु उप्पण्णाओ, देवीओ चिन्ह जाहूणं जिय-कप्पे, जेंति हु देवा
६००००० | ४००००० ।
अर्थ- सब दक्षिणेन्द्रोंके सौधर्मकल्प में छह लाख ( ६००००० ) विमान और उत्तरेन्द्रोंके ईशान कल्प में चार लाख ( ४००००० ) विमान हैं ।। ३३४ ॥
श्रोहिणाणेहि ।
सराग मरणा ।। ३३५।।
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अर्थ- उन कल्पों में उत्पन्न हुई देवियोंके चिह्न अवधिज्ञानसे जानकर सराग मनवाले देव अपने-अपने कल्प में ले आते हैं ।। ३३५||
सोहम्मम्म विमारणा, सेसा छच्चीस- लक्ख संखा जे ।
तेसु
उप्पज्जंते, देवा देवीहि सम्मिस्सा ||३३६॥
अर्थ – सौधर्मकल्प में जो शेष छब्बीस लाख विमान हैं, उनमें देवियों सहित देव उत्पन्न होते हैं ||३३६||
ईसारगम्मि विमाणा, सेसा चउवीस- लक्ख संखा जे ।
उप्पनजंते, देवीओ देव मिस्सा ॥ ३३७ ॥
तेसु
अर्थ – ईशानकल्प में जो शेष चौबीस लाख विमान हैं, उनमें देवोंसे युक्त देवियाँ उत्पन्न होती हैं ||३३७||
विशेषार्थ - प्रारण ( १५ वें ) स्वर्ग पर्यन्त दक्षिण कल्पोंकी समस्त देवांगनाएँ सोधर्म कल्प में उत्पन्न होती हैं और अच्युत ( १६ वें ) कल्प पर्यन्त उत्तर कल्पोंकी समस्त देवांगनाएँ ईशान कल्पमें ही उत्पन्न होती हैं । उत्पत्तिके बाद उपरिम कल्पोंके देव अवधिज्ञान द्वारा उनके चिह्नोंको जानकर अपनी-अपनी नियोगिनी देवांगनाओंोंको अपने-अपने स्थान पर ले जाते हैं। सौधर्मकल्पमें कुल ३२ लाख विमान हैं, जिसमें से ६००००० ( छह लाख ) में मात्र देवांगनाओं की उत्पत्ति होती है और शेष