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तिलोयपण्णसी
[ गाथा : २४४-२४६ अर्थ-सान्तय इन्द्र के तिरेसठ लाख पचास हजार ( ५००००x१२७६३५००००) वृषभ और तुरगादिकमेंसे प्रत्येक भी इतने प्रमाण ही होते हैं ।।२४३॥ ६३५००००४७-४४४५००००।
पण्णासं लक्खाणि, सोवि-सहस्साणि होति वसहारिंग । महसुषिकदे होंति हु, तुरयादी तेत्तिया वि पत्तक्कं ॥२४४।।
५०८०००० । पिंड ३५५६०००० । मर्ष-महाशुक्र इन्द्र के पचास लाख अस्सी हजार ( ४००००४ १२७ =५०८००००) वृषभ और तुरगादिकमेंसे प्रत्येक भी इतने प्रमाण ही होते हैं ॥२४४॥ ५०८००००४७ = ३५५६०००० ।।
प्रदसीसं लक्खं, बस य सहस्साणि होति बसहाणि । तुरयादी तम्मेत्ता, होति सहस्सार - इंवम्मि ॥२४५॥
३८१०००० । पिंड २६६७०००० । अर्थ सहस्रार इन्द्र के अड़तीस लाख दस हजार ( ३००००x१२७=३५१००००) वृषभ और तुरगादिक भी इतने प्रमाण ही होते हैं ॥२४।। ३८१००००४७-२६६७०००० ।।
पणवीसं लक्खाणि, चालीस-सहस्सयाणि 'वसहाणि । पारण-इंदावि-दुगे, तुरयावी तेत्तिया वि पत्तेपक ॥२४६।।
२५४०००० । पिंर १७७८००००। मर्ष-पारण इन्द्रादिक दोके पच्चीस लाख चालीस हजार ( २००००४१२७ - २५४०००० ) वृषभ और तुरगादिकमेंसे प्रत्येक भी इतने प्रमाण ही होते हैं ।।२४६।।
२५४००००४७=१७७८०००० ।
नोट-गाथामें पानतादि चारोंके अनीकों का प्रमाण कहा जाना चाहिए था किन्तु मारण आदि दो का ही कहा गया है, दो का नहीं । क्यों ?
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१. ब. होंति वसहाणि ।