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अर्थ - इसके आगे अनुदिशों में चार उत्तम प्रकीर्णक विमान हैं। तिरेसठवें पटल में प्रकीर्णक नहीं हैं। श्रीबद्ध विमान हैं ।। १७७ ।।
कल्प-नाम
विशेषार्थ - श्रशोबद्ध विमानोंके अन्तराल में पंक्ति होन, बिखरे हुए पुष्पोंके सदृश यत्र तत्र स्थितविमानों को प्रकीर्णक विमान कहते हैं । प्रत्येक स्वर्ग में विमानों की जो सम्पूर्ण संख्या है, उसमें से अपने-अपने पटलोंके इन्द्रक और श्रीबद्ध विमानों की संख्या कम करने पर जो अवशेष रहे वही प्रकीर्शकों का प्रमाण है । यथा
सोमं कल्प
ऐशान
37
सानत्कुमार
महेन्द्रकल्प
ब्रह्म- कल्प
लान्तव कल्प
महाशुक
सहस्रार
आनतादि ४
अधोग्रं येयक
तिलोयपणाती
ततो अणुद्दिसाए, चत्तारि पइण्ण्या वर विमाणा ।
·
तेसट्ठि प्रहिप्पाए, पइष्णया णत्थि श्रत्थि सेढिगया ।।१७७ ।।
मध्यम "
उपरिम
अनुदिश
अनुत्तर
"
सर्व विमान संख्या
1
३२०००००
२८०००००
१२०००००
८०००००
४०००००
५००००
100002
६०००
9001
१११
१०७
६१
ε
५
इन्द्रक + श्र ेणीबद्ध =
( ३१+४३७१ ) =
( ० + १४५७ ) ==
( ७+ ५०० ) =
[ गाथा : १७७
( ०+१९६
( ४+३६० )
( २+१५६ )
( १+७२ ) =
( १+६८ ) =
( ६ + ३२४ ) =
(३+१०६ ) =
( ३+७२ ) =
( ३+३६ ) =
( १ + ४ } =
( ? +8 ) =
===
प्रकीर्णक
३१९५५९८
२७९८५४३
११६६४०५
७९९८०४
३६६६३६
४९६४२
३९९२७
५६३१
३७०
0
३२
५२
४
०