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________________ ४४८ ] तिलोयपणती [ गाथा : २२-२६ तेवाल-लक्ख-जोपण-अट्ठावण्णा-सहस्स • चउसट्ठी । सोलस - कलाओ सहिवा, चंदिवय-5द-परिमाणं ॥२२॥ __ ४३५८०६४ । । अर्थ-तैतालीस लाख अठ्ठावन हजार चौंसठ योजन और सोलह कलानों सहित ( ४३५८०६४१ योजन ) चन्द्र इन्द्रकके विस्तारका प्रमाण है ।।२२॥ बादाल-लक्ख-जोयण, सगसोदि-सहस्सयाणि अण्णउदी । बोरर मरणः हो, बग्गु - विमाणस्स णादब्वं ॥२३॥ ४२८७०६६ । । । प्रर्थ-बियालीस लाख सतासी हजार छयानबै थोजन और चौबीस कला अधिक ( ४२८७०९६१ योजन ) वल्गु विमानका विस्तार जानना चाहिए ।।२३॥ बाबाल-लाख-सोलस-सहस्स-एक्कसय-जोयणारिण च। उपतीसहियाणि, एक्क-कला वीर-बए दो ॥२४॥ मर्थ-वीर इन्द्रकका विस्तार बयालीस लाख सोलह हजार एक सौ उनतीस योजन और एक कला अधिक ( ४२६६१२६ यो० ) है ।।२४।। एक्कत्ताल लक्खं, पणदाल-सहस्स-जोयणेक्फ-सया । इगिसट्ठी अमहिया, णव अंसा अरुण' - इंदम्मि ॥२५॥ ___४१४५१६१ ।।। मर्ष - अरुण इन्द्रकका विस्तार इकतालीस लाख पैतालीस हजार एक सौ इकसठ योजन और नौ भाग अधिक ( ४१४५१६१यो० ) है ।।२५।। चउहतरि सहस्सा, तेग उदि-समधियं च एक्क-सयं । चालं जोयण-सवला, सत्तरस कलामो पंदणे वासो ॥२६॥ ४०७४१९३ । । अर्थ-नन्दन इन्द्रकका विस्तार चालीस लाख चौहत्तर हजार एक सौ तेरान योजन और सत्तरह कला अधिक ( ४०७४१९३५ योजन ) है ।।२६।। १. द.ब. क. ज. ठ. वरुण ।
SR No.090506
Book TitleTiloypannatti Part 3
Original Sutra AuthorVrushabhacharya
AuthorChetanprakash Patni
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year
Total Pages736
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Geography
File Size15 MB
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