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गाथा : १९-२१ ]
अमो महाहियारो
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अथ प्रथम ऋतु नामक इन्द्रक विमान पंतालीस लाख (४५००००० ) योजन और अन्तिम सर्वार्थसिद्धि इन्द्रक विमान एक लाख ( १००००० ) योजन प्रमाण विस्तार युक्त हैं ।। १८ ।। इन्द्र विमानोंकी हानि - वृद्धिका प्रमाण एवं उसके प्राप्त करने की विधि --
हमे चरिमं सोहिय, रूवो णिय- इ वय -प्पमाणेणं ।
भजिणं जं लद्धं, ताओ इह हारिण बड्ढीओ ॥१६॥
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ते रासि ६२ । ४४००००० | १ |
अर्थ- प्रथम इन्द्रक के विस्तारमेंसे अन्तिम इन्द्रकके विस्तारको घटाकर शेष में एक कम इन्द्रक - प्रमाणका भाग देनेपर जो लब्ध प्राप्त हो उतना यहाँ हानि-वृद्धिका प्रमाण समझना चाहिए ।। १६ ।।
सर-सहरस-व-सय- सगसट्ठी - जोयणाणि तेवीसं । साइगितीस हवा, हाणो पढमादु चरिमबो' वड्डी ॥२०॥
७०९६७ । १ ।
अर्थ-सत्तर हजार नौ सौ सड़सठ योजन और एक योजनके इकतीस भागों में से तेईस भाग अधिक ( ७०९६७ यो० ) प्रथम इन्द्रककी अपेक्षा उत्तरोत्तर हानि और इतनी ही अन्तिम इन्द्रककी अपेक्षा उत्तरोत्तर वृद्धि होती गई है ||२०||
विशेषार्थ--:
-- प्रथम पटलके प्रथम ऋजु विमानका विस्तार मनुष्यक्षेत्र सहा ४५ लाख योजन प्रमाण है और अन्तिम पटल के सर्वार्थसिद्धि नामक अन्तिम विमानका विस्तार जम्बूद्वीप सदृश एक लाख योजन प्रमाण है । इन दोनोंका शोधन करनेपर ( ४५००००० १००००० } = ४४००००० योजन अवशेष रहे । इनमें एक कम इन्द्रकों ( ६३ - १६२ ) का भाग देनेपर ( ४४०००००÷ ६२ ): ७०९६७
योजन हानि और वृद्धिका प्रमाण प्राप्त होता है ।
इन्द्रक विमानोंका पृथक्-पृथक् विस्तार
चउवाल- लक्ख-जोयण, उणतीस सहस्तयारिण बत्तीसं ।
इगितीस हिदा श्रद्धय, कलानो विमलिक्यस्स वित्वारो ॥ २१ ॥
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४४२९०३२ । ॐ ।
अर्थ - चवालीस लाख उनतीस हजार बत्तीस योजन और इकतीससे भाजित आठ कला अधिक (४४२९०३२०१ योजन ) विमल इन्द्रक के विस्तारका प्रमाण कहा गया है ||२१||
१. ब. परिमजुवो।