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गाथा : ६१८ ]
सत्तमो महाहियारो
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=जगत्प्रतर, ७ । ७ का अर्थ है ७४७ | आगे ६४ x ६४ । १०° का अर्थ है १०००००×१००००० और ७ का अर्थ संख्यात है ।
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पुणो एवं बुट्टाणे ठविय एक्क- रासि बे-सय- अट्ठासी दि-रूमेह गुरिषदे सव्व श्रादिधण पमाणं होदि । २८८ ।। ७ । ६४ । ६४ । १० । ७ । अवर- रासि चउसट्ठिरूहि गुणिदे सध्व वचय-धणं होवि । ६४ । । ७ । ६४ । ६४ । १० । ७ । एदे दो रासो मेलिय' रिण रासिमवणिय गुणगार - भागहार- रुवाणि मोबट्टाविय-भागहारभूद-संखेज्ज- रूव-गुणिव जोयण- लक्ख-वग्गं पवरंगुले कवे संखेज्ज रूह गुणिव पण्णट्टसहस्स पंच सय छत्तीस रूवमेत पदरंगुलेहि जगपदरमवहरियमेतं सव्व - जोइसिय- बिब६५५३६ । ७ ।
पमाणं होदि । तं चेदं
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पुणो एक्कम्मि बिबम्मि तप्पा उग्ग संखेज्ज-जीवा श्रत्थि त्ति तं संखेज्ज-रूवे ह गुणिदेसि सम्ब-जोइसिय-जीव रासि परिमाणं होदि । तं चेदं । ६५५३६ ।
अर्थ - पुनः इसे दो स्थानोंमें रखकर एक राशिको दो सौ अठासी से गुणा करनेपर सब श्रादि धन होता है; और इतर राशिको चौंसठ रूपोंसे गुणा करनेपर सर्व प्रचय-धनका प्रमाण होता है | इन दो राशियोंको मिलाकर ऋण राशिको कम करते हुए गुणकार एवं भागहार रूपों को अपवर्तित करके भागहार-भूत संख्यात- रूपोंसे गुणित एक लाख योजनके वर्ग के प्रतरांगुल करनेपर संख्यातरूपोंसे गुणित पैंसठ हजार पांच सौ छत्तीस रूपमात्र प्रतरांगुलोंसे भाजित जगत्प्रतर- प्रमाण सब ज्योतिषी बिम्बोंका प्रमारण होता है । वह यह है- ६५५३६ | ७ |
पुनः एक बिम्बमें तत्प्रायोग्य संख्यात जीव विद्यमान रहते हैं, इसलिए उसे संख्यात- रूपों से गुणा करनेपर सर्व ज्योतिषी जीव - राशिका प्रमारण होता है । वह यह है- । ६५५३६ ।
विशेषार्थ - उपर्युक्त गद्य में प्राप्त राशिको दो स्थानों पर स्थापित कर पृथक्-पृथक् २८८ और ६४ से गुणित कर प्राप्त हुए त्रादिधन और प्रचयघन को सम्मिलित करने के लिए कहा गया है । जो इसप्रकार है :
:―
प्राप्त राशि=
आदिधन
जगत्प्रतर
प्रतरांगुल १ लाख x १ लाख x संख्यात ६४ x ६४ x ७ × ७ २५८ जगत्प्रतर
प्रतरांगुल x १ लाख × १ लाख x संख्यात ६४ ६४ x ७७
१. द. ब. मेलि । २.द. ब. क. अ. गुणहार ।