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तिलोयपगत्तो
[ गाथा : ६१८ आदिधन १४४४ ६४४४ + उत्तरधन ( ३२४६४४४ ऋण ६४४२) को जोड़नेसे १७६४६४४४ ऋण ६४४२ होता है; जो पुष्करवर समुद्रके धन १७६४ ६४ से चौगुना. और ऋण ६४ से दुगुना है।
इसीप्रकार आगे-मागे प्रत्येक द्वीप-समुद्रमें धनराशि चौगुनी और ऋणराशि दुगुनी होती गई है।
गच्छ प्राप्त करनेके लिए परम्परा-सूत्रका मौचित्यसंपहि एवं रासीणं ठिद-संकलणाणमाण यण उच्चदे-छ-रूवाहिय-जंबूदीयं छेदणएहि परिहीण-रज्जु छेदणाप्रो गच्छं काढूण जदि संकलणा प्राणिज्जदि तो जोदिसिय-जीव-रासी ण उपज्जदि, जगपदरस्स वे-छप्पणंगुल-सद-बग्गभाग-हाराणववत्तीवो। तेण रज्जु छेदणासु अस पि तप्पासोग्गाणं संखेज्ज - स्वाणं हारिंग काऊरण गच्छा ठवेयध्या । एवं कदे दिय - समुद्दो प्रादी ण होवि त्ति णासंकणिज्ज; सो चेव आदी होदि, सयंभूरमणसमुहस्स परभाग - समय - रज्जु - मछरणय - सलागागमणियरणकारणादो।
अर्थ-अब इसप्रकार अवस्थित राशिके संकलन निकालनेका प्रकार कहते हैं-छह रूप अधिक जम्बूद्वीपक अर्धच्छेदोंसे परिहीन राजूके अर्धच्छेदोंको गच्छ राशि बनाकर यदि संकलन राशि निकाली जाती है तो ज्योतिष्क - जीवराशि उत्पन्न नहीं होती है, क्योंकि { ऐसा करनेपर ) जगत्प्रतरका दो सौ छप्पन अंगुलों ( सूच्यांगुलों ) के वर्ग-प्रमाण भागहार उत्पन्न नहीं होता है । अतएव राजके अर्धच्छेदोंमेंसे तत् प्रायोग्य अन्य भी संख्यात रूपोंकी हानि ( कमी) करके मच्छ स्थापित करना चाहिए ।
ऐसा करनेपर तृतीय समुद्र आदि नहीं होता है, ऐसी आशंका नहीं करनी चाहिए, क्योंकि वह तृतीय-समुद्र ही आदि होता है । इसका कारण स्वयंभूरमण-समुद्रके परभागमें उत्पन्न होनेवाली राजूकी अर्धच्छेद-शलाकारोंका पाना है।
सयंभूरमणसमुद्दस्स परवो रज्जुच्छेदणया अस्थि सि कुवो णववे ? बे-छप्पण्णंगुल-सद-बग्ग-सुत्तादो।
अर्थ-(शंका }-स्वयंभूरमणसमुद्रके परभागमें राजूक अर्घच्छेद होते हैं, यह कैसे जाना ?
( समाधान ):-ज्योतिषीदेवोंका प्रमाण निकालने के लिए दो सौ छप्पन सूच्यंगुल के वर्गप्रमाण जगत्प्रतरका भागहार बतानेवाले सूत्रसे जाना जाता है।