________________
गाथा : ५७३ - ५७५ ]
सतमो महाहियारो
[ ४०७
विशेषार्थ - ५१०१६ योजन प्रमाणवाली एक संचार भूमिमें १५ वीथियाँ होती हैं, जिसे दो चन्द्र पूरा करते हैं । लवणोदधि आदि में क्रमश: ४, १२, ४२ र ७२ चन्द्र हैं । जब दो चन्द्रोंके प्रति १५ वीथियाँ हैं, तब ४ १२, ४२ और ७२ चन्द्रोंके प्रति कितनी बोथियों होंगी ? इसप्रकार राशिक करनेपर वीथियोंका क्रमशः पृथक्-पृथक् प्रमाण लवणोदधि में ( 14 ) = ३०, धा० खण्ड में ( १५x१२ ) =९०, कालोदधिमें ( ४ ) = ३१५ और पुष्करार्घद्वीप में (१५३०२ ) = ५४० प्राप्त होता है ।
लवणोदधि प्रादिमें चन्द्रकी मुहूर्त-परिमित गतिका प्रमाण प्राप्त करने की विधि -
णिय-पह परिहि पमाणे, पुह-पुह दु-सएकक वीस- संगुणिवे ।
तेरस सहस्त- सग-सय-पणुवीस हिदे मुहुत्त' गविमारणं ॥ ५७३ ॥
२२१ १३७२५
1
अर्थ – अपने-अपने पथों की परिधिके प्रमाणको पृथक्-पृथक् दो सौ इक्कीस ( २२१ ) से मुरगाकर लब्धमें तेरह हजार सात सौ पच्चीसका भाग देनेपर मुहूर्तकाल परिमित गतिका प्रमाण आता है ।।५७३ ।।
-
लवणसमुद्रादिमें चन्द्रों की शेष प्ररूपणा
सेसाश्रो वण्णणाओ, जंबूदीयम्मि जाओ चंदाणं ।
ताओ लवणे धावडे कालोद पुक्खरद्ध सु ॥५७४ ॥
१. व. मुहर्गादि, म. मुहुर्त ।
·
एवं चंदाणं परूवणा समत्ता ।
धर्म- लवणोदधि, घातकीखण्ड, कालोदधि और पुष्करार्धं द्वीपमें स्थित चन्द्रों का शेष वर्णन जम्बूद्वीप के चन्द्रोंके वर्णन सदृश जानना चाहिए ।। ५७४ ।।
इसप्रकार चन्द्रोंकी प्ररूपणा समाप्त हुईं।
लवणसमुद्रादिमें सूर्योका प्रमाण
चत्तारि होंति लवणे, बारस सूरा य धादई संडे ।
बादाला कालोवे, बावर्त्तारि पुषखरद्धम्मि ।।५७५ ॥
४ । १२ । ४२ । ७२ ।