________________
जम्बूद्वीप के क्षेत्रों और पर्वतों के क्षेत्रफलों की गणना
लेखक-प्रो० डॉ० राधाचरण गुप्त
वी यादी मेसरा, दौनी--३५२१५ मायिका विशुद्धमतीजी की भाषा टीका के साथ यतिवृषभाचार्य रचित तिलोयएण्णती (त्रिलोक प्रज्ञप्ति ) का नया संस्करण भारतवर्षीय दिगम्बर जैन महासभा द्वारा प्रशिकरूप में प्रकाशित हो चुका है । इसके प्रथम खण्ड ( १९८४ ) में तीन अधिकार और दूसरे खण्ड (१९८६) में चतुर्थ अधिकार छप चुका है जो कि गणित की दृष्टि से महत्वपूर्ण है । चौथे अधिकार की गाथाओं २४०१ से २४०६ ( पृष्ठ ६३६ से ६३९ तक ) में जो विभिन्न क्षेत्रों के मान और उनके निकालने की विधि दी गई है उन्हीं का विस्तृत विवेचन इस लेख में किया जा रहा है।
वृत्ताकार जम्बूद्वीप को पूर्व से पश्चिम तक १२ समानान्तर सीमा रेखाएँ खींचकर १३ भागों में बांटा गया है जिनमें भरत, हैमवत, हरि, विदेह, रम्यक, हैरण्यवत और ऐरावत नामके ७ क्षेत्र तथा उनको एक दूसरे से अलग करने वाले हिमवान्, महाहिमवान्, निषध, नील, रुक्मि और शिखरी नामके ६ पर्वत हैं (खण्ड दो, पृष्ठ ३३ पर दी गई तालिका देखें)। जम्बूद्वीप के दक्षिणी बिन्दु से आरम्भ करके उपयुक्त ७ क्षेत्रों और उनके बीच-बीच में स्थित ६ पर्वतों का विस्तार क्रमशः १, २, ४, ८, १६, ३२, ६४, ३२, १६, ८, ४, २ तथा १ शलाकाएं हैं जहाँ एक शलाका का मान 1300 = ५२६ प योजन है।
क्योंकि...
१+२+४++१६+ ३२-+६४+३२+१६+६+४+२+१-१९० तथा जम्बूद्वीप का व्यास एक लाख योजन है ( जिसे १९० शलाकाओं में विभाजित मान लिया गया है।
ऊपर के वर्णन से यह स्पष्ट है कि जम्बूद्वीप का पूर्व से पश्चिम तक खींचा गया व्यास मध्यवर्ती विदेह क्षेत्र के दो बराबर भाग करता है जिन्हें उत्तरविदेह और दक्षिणविदेह कहा जायगा। यह भी स्पष्ट है कि भरत, हिमवान, हैमवत, महाहिमवान्, हरि, निषध तथा दक्षिण विदेह की उत्तरी सीमाएँ जम्बूद्वीप के दक्षिणी चाप के साथ मिलकर विभिन्न धनुषाकार क्षेत्र ( सेगमेन्ट ) बनाते हैं जिनकी ऊंचाइयां क्रमशः १. ३, ७, १५, ३१, ६३ व ६५ शलाकाएं होंगी ( जिनमें से अन्तिम ऊंचाई व्यासार्थ के बराबर है ) । प्राचीन ग्रंथों में धनुषाकार क्षेत्र की ऊंचाई को इषु या बारण कहा गया है।
'तिलोयपात्ती' के चतुर्थ महाधिकार की गाथा १५३ ( देखिए खण्ड २, पृष्ठ ५१ ) में । धनुषाकार क्षेत्र की जीवा निकालने का यह सूत्र दिया गया है