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________________ [ ४५ ] योजन विस्तार वाले जम्बूद्वीप के मध्य में १०००० योजन विस्तार वाला सुमेरु पर्वत है। चन्द्रों के चार क्षेत्र में पन्द्रह गलियां हैं. जिनमें प्रत्येक का विस्तार योजन है । यह गमन वृत्ताकार वीथियों में होता बतलाया गया है जिनके अंतराल ३५३१० योजन हैं । वलयाकार-क्षेत्र का विस्तार ५१० योजन है । इनसे परिधि प्रादि प्राप्त होती है, परन्तु गमन वास्तव में समापन एवं असमापन कुतल में होता होगा । IT का मान १० ही लिया गया है । पाथा ७/१७६ जब त्रिज्या बढ़ती है तो परिधि पथ बढ़ जाता है किन्तु नियत समय में वह पथ पूर्ण करने हेतु पात्र सूर्य दोनों की गलियों शीघ्र होती हैं, जिससे वे समानकाल में असमान परिधियों का अतिक्रमण कर सकें। उनकी गति काल के असंख्यातवें भाग में समान रूप से बढ़ती होगी। गाथा ७/१८६ चंद्रमा को रेखीयगति अंतः वीथी में स्थित होने पर १ मुहूर्त में ३१५०८९६२ =५०७३ पु योजन होती है । गाथा ७१२०१ चंद्रमा की कलानों तथा ग्रहण को समझाने हेतु चन्द्र बिंब से ४ प्रमाणांगुल नीचे कुछ कम १ योजन विस्तारवाल काले रंग के दो प्रकार के राहुषों ( दिन राहु और पर्व राहु) की कल्पना की गई है। राहु के विमान का बाहल्य ३.... योजन है । राहु की गति और चंद्र गति के वैशिष्ट्य पर कलाएं प्रकट होती हैं। गाथा ७/२१३ चंद्र दिवस का प्रमाण ३११४ माना गया है । गाथा ७/२१६-२१७ पर्वराहु का गतिविशेषों से चांद की गति से मेल होने पर चंद्र ग्रहणादि होते माना गया है। गाथा ७२२८ चन्द्र जैसा विवरण सूर्य का है। गाया ७/२७६ सूर्य की मुख्यतः १९४ परिधयों या अक्षांशों में स्थित प्रदेशों एवं नगरियों का वर्णन मिलता है। गाया ७/२७७ जब सूर्य प्रथम पथ में रहता है तब समस्त परिधियों में १८ मुहूर्त का दिन तथा १२ मुहूर्त की रात्रि होती है । यह स्थान कश्मीर के उत्तर में होना चाहिए क्योंकि भिन्न भिन्न अक्षांशों में यह समय बदलता है । ठीक इसके विपरीत बाह्य पथ में सूर्य के स्थित होने पर होता है । शेष विवरण स्पष्ट हैं। ज्योतिषबिम्बों के प्रमाण की गणना, जघन्य परीतासंख्यात निकालने की गणना, पल्य राशि की गणना के लिए "तिलोयपण्णसी का गणित" पृ० १६ से लेकर पृ० १०४ तक दृष्टव्य है । उपयुक्त गणित का किंचित्स्वरूप पूज्य प्रायिका विशुद्धभती माताजी के निर्देशानुसार प्रस्तुत परम्परानुसार चित्रित किया है। कई स्थलों पर मूल ग्रंथों के अभिप्राय समझने में अभी हम असमर्थ हैं और वे बहुश्रुतधारी मुनिवरों के द्वारा भागामी काल में शोघ द्वारा निणीत किये जायेंगे, ऐसी आशा है। परम पूज्य माताजी में कई स्थलों पर अपनी प्रज्ञा से स्पष्टीकरण करने का प्रयास किया है जो दृष्टव्य है।
SR No.090506
Book TitleTiloypannatti Part 3
Original Sutra AuthorVrushabhacharya
AuthorChetanprakash Patni
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year
Total Pages736
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Geography
File Size15 MB
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