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________________ ३४८ ] ( श्ररिष्टपुरीको परिधि योजन तम क्षेत्र है । ५७५ ४५४६६१ तिलोय पण्णत्ती = |२२६८६२३ – १८१६ } X एक्कं छउ अड्डा, चउ अंक कमेण पंच पंचट्ठा । वय कलाश्री खग्गा - मज्झिम- पणधीए तिमिर-खिदी ।। ३८६ ॥ .६८५५ ४८४६१ अर्थ-खड्गापुरी के मध्यम प्रणिधिभाग में तिमिर क्षेत्र एक, छह, चार, भाठ और चार, इन अंकों क्रमसे अड़तालीस हजार चार सौ इकसठ योजन और नौ हजार आठ सौ पचपन कला अधिक रहता है ।। ३८६॥ ( खड्गपुरीकी परिधि = २४१६४८ - १३३) ४८४६१२३ योजन सम क्षेत्रका प्रमाण है । - दुग-भ-वेवक-पंचा, अंक-कमे सावय-छक्क सचट्ठा । सा मंजुसणयरी - मज्झिम पणधीए तम खेत्तं ॥ ३८७॥ [ गाथा : ३६६-३८९ ६२६०४७१88 = १४४ ( मंजूषा नगरीकी परिधि २५८८०५७ Raspxv X ५१९०२४योजन ताप-क्षेत्रका प्रमाण है । - = ५१६०२ ।। अर्थ - मंजूषा नगरीके मध्यम प्रण विभाग में तम - क्षेत्र दो, शून्य, नौ, एक और पाँच इन अंकों क्रमसे इक्यावन हजार नौ सौ दो योजन और आठ हजार सात सौ उनहतर भाग प्रमाण रहता है || ३८७|| - = १४१८ २०३८ सत्त-छ-अटु- चउक्का, पंचक कमेण जोयणा अंसा । पंच-छ- प्र दुगेवकर, श्रोसहिपुर -पणिषि-तम-खेत्तं ॥ ३८८ ॥ १४६४० ७५१८५४०४३ १४६४० ५४८६७ । १६ । अर्थ - श्रपधिपुर के प्रणिधिभाग में सम क्षेत्र सात, छह, आठ, चार और पांच इन अंकों के क्रमसे चौवन हजार आठ सौ सड़सठ योजन और बारह हजार आठ सौ पैंसठ भाग प्रमाण रहता है ||३८|| ( औषधिपुरकी परिधि २७३५६११ – २१८*५ ) x = " ५४८६७३७३१ योजन तमक्षेत्रका प्रमाण है । अट्ठख-ति प्रट्ठ- पंचा, अंक-कमेण जोयणाणि अंसा य । ब- सग-सग एक्क्का, सम-खेत्तं पु'डरिंगिणी - णयरे ॥ ३६६ ॥ ८३०८ 2
SR No.090506
Book TitleTiloypannatti Part 3
Original Sutra AuthorVrushabhacharya
AuthorChetanprakash Patni
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year
Total Pages736
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Geography
File Size15 MB
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