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[ ४१ ] -[ Dang -३००००० ] [ ९ ( Dan-, ---१०००००)-९०००००:१५ प्राप्त होगा। यह सूत्र महत्वपूर्ण है । गाथा ५/२७४ जब द्वीप का विष्कम्भ दिया गया हो, तब इच्छित द्वीप से ( जम्बूद्वीप को छोड़कर ) अधस्तन द्वीपों का संकलित क्षेत्रफल निकालने का सूत्र यह है
( Den., -१००००० ) [ { Dan., -१०००००) ९-२७००००० ] + १५ यहाँ DEn. २-१ वी संख्या क्रम में आने वाले द्वीप का विस्तार है । गाथा ५/२७६ धातकी खंड द्वीपके पश्चात् वणित वृद्धियां त्रिस्थानोंमें क्रमशः
-४२, x, x ४ होती हैं जब कि गणना ' की धातकी खंडद्वीप से प्रारंभ होती है। पाथा ५/२७७ अधस्तन द्वीप या समुद्र से उपरिम द्वीप या समुद्र के आयाम में वृद्धि का प्रमाण प्राप्त करने के लिए सूत्र दिया गया है । यहाँ ।' को गणना घासकीखंड द्वीप से प्रारम्भ होती है । प्रतीक रूपेण आयामवृद्धि= DA' ४९०० है । गापा ५/२८० आदि
यहा से कायमार्गणा स्थान में जीवों की संख्या प्ररूपणा. संदृष्टियों के द्वारा दी गई है। संदृष्टियों का विशेष विवरण पं० टोडरमल की गोम्मटसार को सम्यक्ज्ञान चंद्रिका टीका के संदृष्टि अधिकार में विशेष रूपसे स्पष्ट कर लिखी गई है। संदृष्टियों में संख्या प्रमाण तथा उपमा प्रमाण का उपयोग किया गया है जो दृष्टव्य है । इसीप्रकार आगे इंद्रिय मार्गणा की संख्या प्ररूपरणा भी को गयो है। इनके मध्य अल्पबहुत्व भी दृष्ट्वा है जो संदृष्टियों में दिया गया है। गाषा ५/३१८ इस गाथा के पश्चात् अवगाहना के विकल्प का स्पष्टीकरण दिया गया है। धवला टीका में भी इस प्रकरण को देखना चाहिए। गामा ५/३१९-३२. शंख क्षेत्र का गणित इस गाथा में है जो माधवचन्द्र विच की त्रिलोकसार की संस्कृत टोका में सविस्तार दिया है । शंखावत क्षेत्र का घनफल ३६५ घन योजन निकाला गया है इसकी वासना माधवचन्द्र विद्य ने प्रस्तुत की है जिसे पूज्य आर्यिका माता विशुखमतीजी ने विशेष विस्तार के साथ स्पष्ट की है।*
यहाँ सूत्र यह है : क्षेत्रफल=
* देखिये बिलोकसार, श्रीमहावीरजी, वो नि० सं० २५०१, गापा ३२७, पृ. २७२-२७६ ।