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मत्तमी महाहियारी
गगनखण्डों का अतिक्रमण काल --
गच्छदि मुहुत्तमेव, तोसम्महियाणि अट्टर - सयाणि । भ-खंडाणि रविणो, तम्मि' हिदे सम्व-गयण थंडा || २६८ ||
गाथा : २६६-२७१
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१८३० ।
अर्थ- सूर्य एक मुहूर्त में अठारह सौ तीस ( १८३० ) गगनखण्डों का प्रतिक्रमण करता है, इसलिये इस राशिका समस्त गगनखण्डों में भाग देनेपर जो लब्ध प्राप्त हो उतने मुहूर्त प्रमाण सम्पूर्ण खण्डों के अतिक्रमणका काल होगा ।। २६८ ॥
विशेषायं -सूर्य एक मुहूत में १८३० गगनखण्डोंका अतिक्रमण करता है, तब १०९८०० गगनखण्डों पर भ्रमण करने में कितना समय लगेगा ? १०९८०० ÷ १८३० = ६० मुहूर्त लगेंगे । प्रबभंतर- वीहीदो, दु-ति-च-पहृदीसु सम्ब-वीहीसु ।
कमलो से रविबिना, भमंति सट्टो मुहतहि ॥ २६६॥
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अर्थ - अभ्यन्तर वीथी से प्रारम्भकर दो, तीन, चार इत्यादि सब वीथियों में क्रम से ( प्रत्येक ahar में आमने-सामने रहते हुए ) दो सूर्य-बिम्ब साठ मुहूर्तों में भ्रमण करते हैं ।। २६९ ।।
सूर्यका प्रत्येक परिधि में एक मुहूर्त का गमन-क्षेत्र -
इच्यि परिहि पमाणं, सहि-मुहुलेहि भाजिदे लखौं ।
सेसं दिवसकराणं, मुहुच गमणस्य परिमाणं ॥ २७० ॥ ॥
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५२५१ । ३ ।
अर्थ-इट परिधि में साठ (६०) मुहूर्तीका भाग देनेपर जो लब्ध प्राप्त हो और जो (आदि ) शेष बचे वह सूर्यके एक मुहूर्त कालके गमन क्षेत्रका प्रमाण जानना चाहिए || २७० ॥
१. ख. तम्मि लिदे, फ. ज. तु मिलिये ।
विशेषार्थ - यथा - प्रथम परिधिका प्रमाण ३१५०८९ योजन है, अतः ३१५०८९÷६० ५२५१ योजन प्रथम वीश्री में एक मुहूर्त का गमनक्षेत्र है ।
पंच सहस्त्राणि दुवे, सयाणि इगिवण्ण जोयणा श्रहिया । उणतीस-कलाप हम्मि विणयर- मुहुत-गविमाणं ॥ २७१ ॥
५२५१ । २९ ।
एवं दुरिम- मग्गतं वव्यं ।