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गाथा : ६५-६६ ]
पंचमो महाहियारो
चन्द्र विमान
B
जिन भवन
बाल्य २८/६१
ब्यास ४६३६१०
१२००० किरणें
सूर्य मण्डलों की प्ररूपणा
चित्तोवरिम-तलादो, उवरि गंतूण जोयणट्ट-सए 1
दिगयर - जयर-तलाई, णिच्चं चेट्ठति गयणम्मि ||६५ ||
| २५७
। ८०० 1
अर्थ- चित्रा पृथिवीके उपरिमतल से ऊपर माठ सो ( ८०० ) योजन जाकर आकाश में नित्य ( शाश्त्रत ) नगरतल स्थित हैं ॥ ६५ ॥
उत्तारणावद्विद-गोलकद्ध' सरिसाणि रथि - मणिमयाणि ।
ताणं पुह पुह बारस- सहस्त उन्हयर - किरणाणि ॥ ६६ ॥
। १२००० ।
अर्थ- सुके मणिमय विमान ऊर्ध्व अवस्थित प्रधं गोलक सदृश हैं । उनकी पृथक्-पृथक् बारह हजार ( १२०००) किरणें उष्णतर होती हैं ॥१६६॥
१. व. ब. क्र. ज. गोलद्ध ।