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________________ गाथा : १२-१६ पंचमो महाहियारो [ २४७ इन्द्र स्वरूप चन्द्र ज्योतिषो देवोंका प्रमाणअट्ठ-चउ-दु-ति-ति-सत्ता सत्त य ठाणेसु णवस सणाणि । छत्तीस-सत्त-वु-रणय-अटा-ति-पक्का होति अंश कमा ।।१२।। । ४३८९२७३६०००००००००७७३३२४८ । एदेहि गणिद-संखेज्ज-रूव-पदरंगुलेहि भजिदाए । सेदि - कदीए लद्ध', माणं चंदाण जोइसिदाणं ॥१३॥ अर्थ - पाठ, चार, दो, तीन, तीन, सात, सात, नौ स्थानोंमें शून्य, छत्तीस, सात, दो, नो, आठ, तीन और चार ये अंक क्रमशः होते हैं। चन्द्र ज्योतिषी देवोंके इन्द्र हैं और इनका प्रमाण उपर्युक्त अंकोंसे गुणित संख्यात रूप प्रतगंगुलोंका जगच्छेणीचे वर्गमें भाग देनेपर जो लब्ध प्राप्त हो उतना [ जगच्छ्रेणी :- ( संख्यात प्रतरांगुल )x(४३८९२७३६०००००००००७७३३२४८}}] है ॥१२-१३।। प्रतीन्द्र स्वरूप सूर्य ज्योतिषी देयों का प्रमाणतेतियमेता रविणो, हयति चंबाण ते पडिद सि । प्रवासीदि गहाणि, एक्केकाणं मयंकाणं ॥१४॥ । ४३८९२७३६०००००००००७७३३२४६ । प्रथं-सूर्य, चन्द्रोंके प्रतीन्द्र होते हैं। इन (सूर्यो) का प्रमाण भी उतना [ जगच्छणीर :- {( संख्यात प्रतरांगुल ) ४ ( ४३८९२७३६०००००००००७७३३२४८ )}] ही है। प्रत्येक चन्द्र के अठासी ग्रह होते हैं ॥१४॥ अठासी ग्रहों के नामबुह-सुक्क-बिहप्पइणो, मंगल-सणि-काल-लोहिदा कणओ। णोल - विकाला केसो, कवयवो कणय - संठाणा ॥१५॥ दु'दुभिगो रत्तणिभो, णीलम्भासो असोय - संठाणो । कंसो त्यणिभक्खो, 'फंसयवण्णो य संखपरिणामा ॥१६॥ १.ब.क.१४ । २. द.ब.क, ज, कंचयवण्णो ।
SR No.090506
Book TitleTiloypannatti Part 3
Original Sutra AuthorVrushabhacharya
AuthorChetanprakash Patni
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year
Total Pages736
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Geography
File Size15 MB
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