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२०२ ] तिलोयपपणत्ती
[ गाथा : ३२० तदो पदेसुत्तर कमेण अढण्हं प्रोगाहण-वियप्पं बसचदि तवणंतरोगाहण - वियप्पं तप्पामोग्ग-संखेज्ज गुणं पत्तो' त्ति | तादे चरिदिय - णित्ति - पज्जतायस्स जहण्णोगाहणा दोसइ ॥
__ अर्थ–पश्चात् प्रदेशोत्तर-क्रमसे आठ जीवोंकी मध्यम अवगाहनाका विकल्प तब तक चलता है जब तक तदनन्तर अवगाहना-विकल्प उसके योग्य संख्यात-गुणा प्राप्त न हो जावे। तब चार इन्द्रिय (८५) निवृत्ति-पर्याप्तककी जघन्य अवगाहना दिखती है ।।
तदो पदेसुत्तर - कमेण णवण्हं मज्झिमोगाहण-वियप्पं वच्चवि तवणंतरोगाहणं संखेज्ज-गुणं पत्तो त्ति । तावे पंचेंदियणन्यत्ति-पज्जत्तयस्स जहण्णोगाहणा वीसइ ।।
अर्य-पश्चात् प्रदेशोत्तर-क्रमसे नौ जीवोंकी मध्यम अवगाहनाका विकल्प तदनन्तर अबमाइनाके संख्यातगुणी प्राप्त होने तक चलता रहता है । तब पंचेन्द्रिय(८६) निवृत्ति-पर्याप्तककी जघन्य अवगाहना दिखती है ।।
तदो पदेसुतर-कमेण दसण्हं मज्झिमोगाहरण-वियप्पं वच्चदि तवणंतरोगाहणं संखेज्ज-गुणं पत्तो ति। तादे सीई दिय - णिव्यत्ति - अपज्जत्तयस्स उक्कस्सोगाहणं दोसइ ।
अर्थ--पश्चात् प्रदेशोत्तर-क्रमसे दस जीवोंकी मध्यम अवगाहनाका विकल्प तदनन्तर अवगाहनाके संख्यातगुणी प्राप्त होने तक चलता रहता है। तब तीनइन्द्रिय(८७) नित्यपर्याप्तक की उत्कृष्ट अवगाहना दिखती है ।।
__ तदो पवेत्तर-कमेण णवण्हं मज्झिमोगाहण-वियप्पं बच्चदि तवरणंतरोगाहणं संखेज्ज - गुणं पत्तो त्ति । तादे चउरिविय - णिवत्ति - अपज्जत्तयस्स उपकरसोगाहणं दोसह ।।
प्रथ-पश्चात प्रदेशोत्तर-क्रमसे नी जीवोंको मध्यम प्रवगाहनाका विकल्प तदनन्सर अवगाहनाके संख्यातगुणी प्राप्त होने तक चलता है । तब चार इन्द्रिय(८८) नित्यपर्याप्तककी उत्कृष्ट अवगाहना दिखती है।
तदो पदेसत्तर-कमेण अट्टाहं मज्झिमोगाहण-वियप यच्चदि तदणंतरोगाहणं संखेज्ज - गुणं पत्तो त्ति । तावे बीई दिय - णिव्यत्ति - अपज्जत्तयस्स उक्कस्सोगाहणं बोसइ ।।
१.द, ब. क. ज. पज्जत्तो।