________________
टोकाकी प्रायिका श्री विशुद्धमती माताजी के विद्यागुरु प० पू० अभीषणशानोपयोगी प्राचार्यरत्न १०८ श्री अजितसागरजी महाराज का उन्हीं की हसत-लिपि में
' मंगल आशीर्वाद तिलोयपणात्ति ग्रन्य गतिवृषभाचार्य द्वारा रमिल अतिप्राचीन कृति है। यह ग्रन्थ यथा नाम तभा गुणानुसार लीमलेोक का अति निस्सल एवं हल वर्णन करता उधनि के नर्णन में कल्पवासी समाल्पातीन हेनों का निस्तत निक्लन है। मध्यलार के कमन में ज्मोलिभी देनों का एनं असेस्प्यात दीपसमदों का अति निराद निरूपण है, लमा अभोलेक के विजेचन में भवनमासी, मन्तरदेवों का कमाल करते हुए नरमादि का निस्तारपूर्वक वर्णन किया है। अतः इस ग्रन्मने अध्ययन मामम से भष्यप्राणी भलभीर मन सम्मादर्शन के। जान कर अपने सम्माजाम की द्धि करते हुए यथाशति अमृत महाजल को पारण कर सुनारुरीमा पालन कर स्वर्गमोस के सुख को प्राप्त करें निगुणपति करणानुयोग की मर्मजा, याख्यान कला में अति निशुणा, निमम परिस्थिति मोसम करने में तत्परा एवं अपने सानिध्य में समागत निकानों से निमादास्पद निभानों पर निर्भरतापून त्यामोचित एवं आगमसम्मतची कर ठोस निर्णय करती है। अलिनिकृष्ट इस मौषिक मुग में ऐसी निरमो आर्थिक की नितालाबरमकला है। यत पण्डिलन श्रेरिनन्द तमा त्यानिगणों के द्वारा किये गमे आगमानिसक प्रचार प्रसार को निसनोभान से निरोध कर सकें । ऐसी निदी मार्मिका निमुद्धमलिने पुरातन प्रतियों से मिलानकर अनिमरिभ्रमक इस गृत्य की सरल सुबोधहिन्दीका की है, अत: पाक गण इसका पठन पाठन चिन्तन एवं ममन कर रुपने साम्यग्ज्ञान की वृद्धि करें तमा जैलशासपचार प्रसार में सहायक बन उर्लभता से मान नरजन्म को सफल करें।हिन्दीटीना कनारोग रहकर शेषस जीवन को जान से
सील करते हुए अपने लक्ष्य की सिधि में सतनसेलानरहे लेमी मेरी मम्ल . नमा मेरा यही शभासीनीद है कि निरोगधमयोगी मनपाल न्यों का मनुनाद कर श्रुतासमना करती रहें और जामिलजलों की हालत में सटामिका बने ।