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________________ [ माथा : २८२ १५८ ] तिलोयपण्पत्ती ___= [(Ext )+ {sxxxai)] या २(८४७२६) + (८४४४६) या :-३५८३२ + २८८ ८१XE१ ६१X८१ ३६१२० सामान्य तीन इन्द्रिय जीवोंका प्रमाण । 2TYL चार इन्द्रिय जीवोंका प्रमाण पुगो तप्पानोग्ग प्रावलियाए असंखेज्जविभागं विरलिदूण सेस-खंड सम-खंड करिय दिण्णे तस्थ बहुखंडे तदिय पुजे पक्खित्ते घरिरिया होंति ॥ अर्थ-पुनः तत्प्रायोग्य पावलीके 'असंख्यातवें भागका विरलनकर शेष खण्डके सदृश ( समान ) खण्ड करके देनेपर उनमेंसे बहुभागको तृतीय पुञ्जमें मिला देनेसे चार इन्द्रिय जीवोंका प्रमाण प्राप्त होता है । विशेषार्थ-अलग स्थापित राशि - 2 को से गुणितकर लब्धराशि को ( पूर्ववत् ) गुण्यमान राशिमेंसे घटा देनेपर = लब्ध प्राप्त होता है । इसे ! से गुणितकर लब्ध को पुनः ! से मुणित करने पर जो लब्ध प्राप्त हो उसे पूर्व स्थापित तृतीय पुञ्ज में मिला देनेसे चार इन्द्रिय जीव-राशिका प्रमाण प्राप्त होता है । यथा || 18 + = ६xx -- [(३xx ) + - ( efxix)] Hrde
SR No.090506
Book TitleTiloypannatti Part 3
Original Sutra AuthorVrushabhacharya
AuthorChetanprakash Patni
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year
Total Pages736
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Geography
File Size15 MB
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