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________________ १५४ ] तिलोयपण्णत्ती [ गाथा : २८२ देनेपर जो लब्ध प्राप्त हो उतना बादर- निगोद-अप्रतिष्ठित पर्याप्त जोबोंकी राशिका प्रमाण होता है । विशेषादष्टि शरीर वनस्पतिकायिक पर्याप्त जीव राशि = पृथिवोका बादर पर्याप्त जीव-राशि: श्रावली असंख्यात O = (-7 ÷ 3) = ( = १ ९ ९ - (GCT) ४ रि १ बादर- निगोद- अप्रतिष्ठित प्रत्येकशरीर वन० का० पर्याप्त जीवराशि= बादर-नि० प्रतिष्ठित प्रत्येकशरीर वन पर्याप्त जीवराशि :- आवली असंख्यात - प ९९९ = प ९ ९ = - {{{+}) - (5 ४रि १ १ रासि माणं होदि । ९ ४रि १ १ १ - ) बादर निगोद प्रतिष्ठित - अप्रतिष्ठित अपर्याप्त जीवराशिका प्रमाण --- सग-सग - पज्जत्त - रासि सग-सग-सामण्ण-रासिम्मि अवणिदे सग-सग अपज्जत बादर - णिगोव-पबिट्ठिद रि रि रिण बावर निगोद- अपविट्ठिद = रि रिण = ६ ६ । ४ प रि - ६ ६ ६ । ४ प अर्थ-अपनी-अपनी सामान्य राशिमेंसे अपनी-अपनी पर्याप्त राशि घटा देनेपर शेष अपनीअपनी अपर्याप्त राशिका प्रमाण होता है ।। विशेषार्थ -- बादर निमोद अप्रतिष्ठित प्रत्येक वनस्पति० श्रपर्याप्त जीवराशि = अप्रति० प्रत्येक० वन० जीवराशि - अप्रति० प्रत्येक० वन० पर्याप्त जीवराशि = (रि) - (१९६९) ४रि १ १ बादर- निगोद प्रतिष्ठित प्रत्येक० वनस्पति अपर्याप्त जीवराशि
SR No.090506
Book TitleTiloypannatti Part 3
Original Sutra AuthorVrushabhacharya
AuthorChetanprakash Patni
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year
Total Pages736
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Geography
File Size15 MB
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