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________________ गाथा : २८२ ] नमो महाहियारो [ १५३ अर्थ–पुनः पूर्व में घटाई गई असंख्यात लोक प्रमाण राशि प्रत्येक शरीर वनस्पतिकायिक जीवोंका प्रमाण होता है ।। विशेषार्थ-सामान्य वनस्पतिकायिक जीव राशिमेंसे साधारगा-वनस्पतिकायिक जोबराशि घटा देनेपर प्रत्येक वनस्पतिकायिक जीवराशि शेष रहती है। जिसका प्रमाण = रिरि है। तप्पत्त यसरीर-वणप्फई दुविहा बादर-णिगोव-पदिट्टिद-अपदिट्ठिद-भेदेण । तत्थ अपविद्धिव-पत्तय-सरीर-यणप्फई असंखेज्जलोग-परिमाणं होइ - रि तम्मि असंखेज्जलोगेण गुणिदे बादर-णिगोद-पविडिद-रासि-परिमाणं होदि = रि = रि ।। अर्थ-बादर निगोद जीवोंसे प्रतिष्ठित ( सहित ) और अप्रतिष्ठित ( रहित ) होने के कारण वे प्रत्येक शरीर वनस्पतिकायिक जीव दो प्रकार हैं। इनमेंसे अप्रतिष्ठित प्रत्येक शरीर वनस्पतिकायिक जीव असंख्यातलोक प्रमाण हैं। इस अप्रतिष्ठित प्रत्येक वनस्पति जीवराशिको असंख्यात लोकोंसे गुणा करने पर बादर निगोद जीवोंसे प्रतिष्ठित प्रत्येक भारीर बनस्पति जीवराशि का प्रमाण होता है। विशेषार्थ-अप्रतिष्ठित प्रत्येक शरीर वनस्पतिकायिक जीवराशिका प्रमाण असंख्यातलोक प्रमाण ( == रि ) है। सप्रतिष्ठित प्रत्येक वनस्पति जीवराशि=अप्रतिष्ठित प्रत्येक वनस्पति जीवराशि x असंख्यात लोक । अर्थात् ( = रि रि ) है। ___ बादर निगोद प्रतिष्ठित-अप्रतिष्ठित पर्याप्त जीवोंका प्रमाण ते दो विरासी पज्जत्त-अपज्जत-भेदेण दुविहा होति । पुणो पुव्वत्त-बादरपुढवि-पज्जत्त-रासि-मावलियाए असंखेजदि-भागेरस खंडिदे बादर-णिगोद-पविहिद-पज्जत रासि परिमारणं होदि । तं आवलियाए प्रसंखेज्जवि-भागेण भागे । र हिदे बाबर-णिगोव-अपदिद्विद-पज्जत्तरासि परिमाणं होदि 1 ॥ अर्थ-ये दोनों ही राशियां पर्याप्त और अपर्याप्तके भेदसे दो प्रकार हैं । पुनः पूर्वोक्त बादर पृथिवीकायिक पर्याप्त जीवराशिको आवलीके असंख्यातवें भागसे खण्डित करनेपर बादर-निगोदप्रतिष्ठित-पर्याप्त-जीवोंकी राशिका प्रमाण होता है । इसमें आवलोके असंख्यातवें भागका भाग
SR No.090506
Book TitleTiloypannatti Part 3
Original Sutra AuthorVrushabhacharya
AuthorChetanprakash Patni
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year
Total Pages736
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Geography
File Size15 MB
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