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१०२ ] तिलोयपणती
[ गाथा : २६७ स्वयम्भूरमणसमुद्र के विष्कम्भ, आयाम और क्षेत्रफलका प्रमाण
सयंभूरमणसमुहस्स विक्खंभं अट्ठायोस-रूवेहि भजिव-जगसेढी पुणो पंचहत्तरिसहस्स-जोयणेहि अभहि होदि । आयाम गहतीस-महि शनि-णव-जगसेढी पुरणो दोणि-लक्ख-पंचवीस-सहस्स-जोयणेहि परिहोणं होदि । तस्स ठवणा--२८ धरण ७५००० । आयाम : रिण २२५००० ।
खेतफलं रज्जूए कदी णव-रूवेहिं गुणिय सोलस-रूवेहि भजिदमत्तं पुणो रज्जू ठयिय एक्क-लक्ख-बारस-सहस्स-पंच-सय-जोयहि गुरिणव-किचूणिय-कदिमेतेहि अमहियं होदि । तं किंचूर-पमाणं पण्णास-लक्ख-सत्तासीदि-कोडि-अमहिय-छस्सय-एक्क-सहस्सकोडि-जोयणमेतं होदि ।
तस्स 'ठवणा-- । धण ७ । ११२५०० । रिण १६८७५००००००।
अर्घ–स्वयम्भूरमरणसमुद्रका विस्तार अट्ठाईससे भाजित जगन्छे रणी और पचहत्तर हजार योजन अधिक है तथा प्रायाम अट्ठाईससे भाजित नौ जगच्य गोमेंसे दो लाख पच्चीस हजार योजन कम है । उसकी स्थापना इसप्रकार है-विस्तार- +७५००० योजन । पायाम = जग०९–२२५००० योजन ।
२८ __ स्वयम्भूरमणसमुद्रका क्षेत्रफल राजूके वर्गको नौसे गुणा करके प्राप्त राशिमें सोलहका भाग देनेपर जो लब्ध प्राप्त हो उतना और राजूको स्थापित करके एक लाख बारह हजार पाँच सौ योजनसे गुरिणत लब्धमेंसे कुछ कम करके जो शेष रहे उससे अधिक है । इस किश्चित् कमका प्रमाण एक हजार छह सौ सतासी करोड़ पचास लाख योजन है । उसकी स्थापना इसप्रकार है--
[ ( राजू ) ४९- १६ ] + ( राजू १४११२५०० यो० ) -- १६८७५०००००० । विशेषार्थ-स्वयम्भूरमण समुद्रका विस्तार जगणी +७५००० योजन ।
- राजु + ७५००० योजन । स्वयम्भूरमणसम्द्रका प्रायाम = ( विस्तार -- १००००० )४९
=[ राज+७५००० - १००००० ]४९ = राजू – २२५००० योजन ।
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१. द. व. उमणा Ye | १६ ।