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________________ [१ ] पूर्वावस्था के विद्यागुरु, सरस्वती की सेवा में अनवरत संलग्न, सरल प्रकृति और सौम्याकृति विनिय रहेगानि श्री के. पाला बारमात्रा शागर की सत्प्रेरणा से ही यह महान् कार्य सम्पन्न हुआ है। उदारमना बी निर्मलकुमारजी सेठी इस ज्ञानयज्ञ के प्रमुख यजमान हैं। प्रापने सेठी ट्रस्ट के विशेष द्रव्य से ग्रंथ के तीनों खण्ड भव्यजनों के हाथों में पहुँचाये हैं। आपका यह अनुपम सहयोग अवश्य ही विशुद्धज्ञान में सहयोगी होगा। संघस्थ ब्रह्मचारी श्री कजोड़ीमलजी कामदार ने इसके अनुदान की संयोजना प्रादि में अथक श्रम किया है उनके सहयोग के बिना संथ प्रकाशन का कार्य इतना शीघ्र होना सम्भव नहीं था। प्रेस मालिक श्री पांवलालजी मदनगंज-किशनगढ़, श्री विमलप्रकाशजी डाफ्टमेन अजमेर, श्री रमेशकुमारजी मेहसा उदयपुर एवं श्री दि० जैन समाज का अर्थ आदि का सहयोग प्राप्त होने से ही आज यह तृतीय खण्ड नवीन परिधान में प्रकाशित हो पाया है। प्राशीर्वाद-इस सम्यग्ज्ञान रूपी महायज्ञ में तन, मन एवं धन प्रादि से जिन-जिन भव्य जीवों . ने जितना जो कुछ भी सहयोग दिया है वे सब परम्पराय शीघ्र ही विशुद्ध ज्ञानको प्राप्त करें; यहो .. मेरा मंगल आशीर्वाद है। मुझे प्राकृत भाषा का किञ्चित् भी ज्ञान नहीं है । बुद्धि अल्प होने से विषयज्ञान भी न्यूनतम है। स्मरणशक्ति और शारीरिक शक्ति भी क्षोण होती जा रही है। इस कारण स्वर, व्यंजन, पद, अर्थ एवं गणितीय अशुद्धियां हो जाना स्वाभाविक हैं क्योंकि-'को न विमुहयति शास्त्र समुद्रे' अतः परम पूज्य गुरुजनों से इस अविनय के लिए प्रायश्चित्त प्रार्थी हूँ। विद्वज्जन ग्रंथ को शुद्ध करके ही अर्थ ग्रहण करें। इत्यलम् ! भद्र भूयात्--- वि० सं० २०४५ महाबीर जयन्ती -प्रायिका विशुद्धमतो दिनांक ३१५३।१९८८
SR No.090506
Book TitleTiloypannatti Part 3
Original Sutra AuthorVrushabhacharya
AuthorChetanprakash Patni
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year
Total Pages736
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Geography
File Size15 MB
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